Feel Positive: हर मामलों में 100 फीसदी परफॉर्मेंस
किसी ने सच ही कहा है कि दुनिया के हर बच्चे का खुशहाली में जीना, खुशहाली में आंख खोलना सबसे बड़ा सौभाग्य होता है। दरअसल अगर हम बचपन में खुशहाल होते हैं तो खुशहाली को भरपूर जीते हैं लेकिन अगर एक संघर्ष के बाद के खुशहाल हुए तो हमारे जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल उस संघर्ष में ही गुजर जाते हैं। तब हम अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए खुशहाल होते हैं। हमें खुशहाली का फायदा तभी मिलता है
जब हमें खुशहाली हमारे बचपन में ही हमें मिली हो। जीवन में सफल और सहज होने के लिए बचपन का खुशहाल होना बहुत जरूरी है। जिंदगी में जब हम खुशहाल होते हैं तब हम अच्छा महसूस करते हैं। अच्छा महसूस करते हैं तो हमारी भावनाएं सकारात्मक रहती हैं। हम किसी से बातचीत करते हुए चिड़चिड़े नहीं होते। सबसे बड़ी बात तो यह कि मनोविदों ने अपने विश्लेषणों में पाया कि जब हमारी भावनाएं सकारात्मक रहती हैं तो हमारा शरीर बहुत अच्छी तरह से काम करता है।
दूसरे शब्दों में कहें कि हम ज्यादातर मामलों में 100 फीसदी परफॉर्मेंस करते हैं। वजह यह कि जब हम खुशहाल होते हैं तो तनाव से मुक्त रहते हैं और इससे हमारे शरीर का हार्मोन संतुलन बहुत अच्छा रहता है। याद रखें जब हम तनाव में होते हैं तो यह तनाव हमारे हार्मोन संतुलन को हमेशा बिगाड़ देता है। हम अक्सर चिंता और अवसाद में डूबे रहते हैं लेकिन जब हम खुशहाल होते हैं तो इस तरह की चिंताएं और अवसाद हमारे पास नहीं फटकते और हमारी बॉडी को हार्मोन असंतुलन से नहीं गुजरना पड़ता।
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स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इर्द-गिर्द नहीं फटकतीं
मेडिकल साइंस में एनाटॉमी एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर हम अपनी जिंदगी में खुशहाल होते हैं तो बड़े रहस्यमय ढंग से हमारा शरीर खुद अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को जबरदस्त मजबूती प्रदान करता है। जब हम खुशहाल होते हैं और दिन के ज्यादातर समय हमारी भावनाएं सकारात्मक होती हैं तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता रोग संक्रमणों से बहुत मजबूती से लड़ने के लिए तैयार रहती है और छोटी-मोटी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तो हमारे इर्द-गिर्द भी नहीं फटकतीं।
हमारी खुशहाली, हमारी सकारात्मकता, हमारा खुश रहना, ये सब चीजें मिलकर हमारे स्वास्थ्य को शानदार और रोग प्रतिरोधक क्षमता को जबरदस्त बनाती हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह खुशहाली जीवन में कब होनी चाहिए क्योंकि देखा गया है कि बहुत सी कमियों और बहुत सी परेशानियों से गुजरकर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग एक उम्र के बाद खुशहाल जीवन हासिल ही कर लेते हैं लेकिन उनका बुनियादी स्वाभाव तो नहीं बदलता।
उन्हें तो वह खुशहाली सहज और संवेदनशील नहीं बना पाती। इसलिए जीवन में खुशहाल रहने के लिए और खुशहाली के तमाम फायदे पाने के लिए आखिर जीवन में कब खुशहाल होना मायने रखता है? निश्चित रूप से बचपन में।
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बचपन में ही डालती है असर
यूं तो जीवन के किसी भी समय की खुशहाली हमें खुशी और सकारात्मकता ही देती है लेकिन हमें सहज और सफल बनाने वाली खुशहाली बचपन की होती है। अगर हमारा बचपन खुशहाली में बीतता है तो उन लोगों के मुकाबले जिनका बचपन खुशहाली में नहीं बीता, हमारे सफल होने के 50 फीसदी चांस ज्यादा होते हैं यानी जिन लोगों का बचपन खुशहाली और सम्पन्नता में बीतता है,
वे अक्सर जिंदगी में सफल होते हैं। उनका स्वभाव अच्छा होता है और वह जिंदगी जीने के लिए बहुत सहज लोग होते हैं। महान जासूसी कथाकार अगाथा क्रिस्टी ने भी कहा है कि किसी के जीवन में खुशहाली सबसे ज्यादा असर बचपन में ही डालती है क्योंकि आप खुशियों का 100 फीसदी इंजॉय भी बचपन में ही कर सकते हैं। एक उम्र के बाद अगर संघर्ष करके आप सम्पन्न हो भी गए…और बड़ी तादाद में होते भी हैं तो भी आपके स्वभाव में वह सहजता नहीं आती जैसी सहजता सम्पन्न बचपन जीने वाले लोगों में होती है।
मस्तिष्क की संरचना का विकास प्रभावित
जन्म से लेकर 8 वर्ष की आयु तक बचपन के शुरुआती अनुभव मस्तिष्क की संरचना के विकास को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं जो भविष्य की सभी शिक्षाओं, व्यवहार और स्वास्थ्य के लिए आधार प्रदान करता है। एक मजबूत नींव बच्चों को अच्छी तरह से काम करने वाले वयस्क बनने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने में मदद करती है।
एक उम्र के बाद अपनी मेहनत से खुशहाली का स्वाद चखने वाले लोगों में खुशहाली स्वाभाविक रूप से वह असर नहीं डालती जो असर खुशहाली का बचपन जीने वालों में होता है। अपनी मेहनत से खुशहाल होने वाले लोग एक उम्र के बाद आर्थिक रूप से सम्पन्न भले हो जाएं लेकिन इससे उनका खुश रहने वाला स्वभाव हो जाए, यह बहुत मुश्किल है क्योंकि जीवन में एक उम्र के बाद आयी खुशहाली लंबे समय तक झेली गई बदहाली से हमेशा दो चार रहती है। एक उम्र के बाद सम्पन्न होने वाले लोग कभी भी सम्पन्न लोगों की तरह न तो उपभोग कर पाते हैं और न ही विहेव क्योंकि उनके मूल स्वाभाव में खुशहाली नहीं बल्कि बदहाली का प्रभाव ज्यादा होता है।
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