In Vitro Fertilization: 1978 में हुआ था पहले “टेस्ट-ट्यूब बेबी” का जन्म
आईवीएफ एक प्रकार की कृत्रिम प्रजनन तकनीक है, जिसके जरिए विभिन्न प्रकार की प्रजनन समस्याओं का सामना करने वाले लोग संतान पा सकते हैं। इसमें भ्रूण बनाने के लिए शरीर के बाहर शुक्राणु के साथ एक अंडाणु को निषेचित किया जाता है और फिर विकसित होने के लिए गर्भाशय में डाल दिया जाता है। आईवीएफ का उपयोग बांझपन के इलाज के रूप में किया जाता है।
अमेरिकन सोसाइटी फॉर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के अनुसार, आईवीएफ का इस्तेमाल “रोगी के चिकित्सा, यौन व प्रजनन इतिहास, उम्र, शारीरिक पड़ताल, नैदानिक परीक्षण“ या “चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता के आधार पर” गर्भधारण करने के लिए किया जाता है। आईवीएफ तकनीक मूल रूप से अवरुद्ध ‘फैलोपियन ट्यूब’ के मद्देनजर प्रजनन उपचार के रूप में विकसित की गई थी, फिलहाल इसका उपयोग अन्य स्थितियों जैसे कम शुक्राणु या अज्ञात कारणों से हुए बांझपन को दूर करने के लिए किया जाता है।
डाले जाते हैं हार्मोन
आमतौर पर आईवीएफ के दौरान, एक मरीज के अंडाशय में अंडाणु उत्पन्न करने के लिए हार्मोन डाले जाते हैं। स्वास्थ्य पेशेवर जब अल्ट्रासाउंड और एक पतली सुई का उपयोग करके अंडाणु निकाल लेते हैं, तो वे अंडाणु के साथ शुक्राणु के निषेचन के लिए उसे इंक्यूबेट (सेते) करते हैं या प्रयोगशाला में शुक्राणु को अंडाणु में प्रवेश कराते हैं। एक मरीज को किस विशिष्ट प्रकार की आईवीएफ प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, इसका निर्धारण स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के साथ व्यक्तिगत आधार पर किया जाता है।
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वैज्ञानिकों ने 1930 के दशक में आईवीएफ तकनीक विकसित करने पर काम शुरू किया और खरगोशों व चूहों पर इसकी शुरुआत हुई। इस शोध के आधार पर अंततः 1978 में पहले “टेस्ट-ट्यूब बेबी” का जन्म हुआ। फिजियोलॉजिस्ट रॉबर्ट एडवर्ड्स को आईवीएफ पर अपने शोध के लिए 2010 में नोबेल पुरस्कार मिला।
कौन कर सकता है इस्तेमाल?
आईवीएफ का उपयोग लगातार बढ़ा है। 2015 में, अमेरिका में सभी शिशुओं में से लगभग 2 प्रतिशत का गर्भधारण आईवीएफ के परिणामस्वरूप हुआ था, और कुल मिलाकर आईवीएफ के लिए जन समर्थन अधिक है। अमेरिका में लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भधारण के लिए किसी न किसी प्रकार की प्रजनन सेवा का उपयोग किया है। इसमें प्रजनन संबंधी सलाह, ओव्यूलेशन बढ़ाने के लिए दवाएं, प्रजनन परीक्षण, सर्जरी और आईवीएफ शामिल हैं। चूंकि उम्र के साथ बांझपन बढ़ता है, 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं आमतौर पर युवा महिलाओं की तुलना में इन सेवाओं का अधिक उपयोग करती हैं।
अमेरिका में जो महिलाएं बांझपन देखभाल सेवा का उपयोग सबसे कम करती हैं, वे अक्सर गैर-अमेरिकी नागरिक होती हैं और उनका बीमा नहीं हुआ होता है, और उनके पास आमतौर पर उन महिलाओं की तुलना में कम आय और कम शिक्षा होती है। भौगोलिक अंतर भी आईवीएफ पहुंच को प्रभावित करता है। 2021 में, मैसाचुसेट्स में सभी शिशुओं में से 5 प्रतिशत से अधिक का गर्भधारण आईवीएफ से हुआ था, लेकिन न्यू मैक्सिको, अर्कांसस और मिसिसिपी में यह एक प्रतिशत से भी कम रहा।
कानूनी तौर पर भी ध्यान
अमेरिका में जून 2022 में रो बनाम जेड मामले में गर्भपात से जुड़े 50 साल पुराने निर्णय को पलटने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद से ‘इन विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (आईवीएफ) तक पहुंच समेत प्रजनन अधिकारों के कई अन्य पहलुओं पर कानूनी तौर पर काफी ध्यान दिया गया है। फरवरी 2024 में ‘अलबामा सुप्रीम कोर्ट’ के फैसले के बाद आईवीएफ पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है, जिसमें सुरक्षित रखे गए भ्रूण को कानूनी तौर पर संतान करार दिया गया है। मैसाचुसेट्स लोवेल विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर और नर्सिंग स्कूल की विभागाध्यक्ष हेदी कॉलिंस फैंटासिया बताती हैं कि यह दशकों पुरानी प्रक्रिया कैसे काम करती है और भावी माता-पिता के लिए इसकी कमजोर कानूनी स्थिति का क्या मतलब है।
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क्यों छिड़ी है बहस?
प्रजनन अधिकारों को लेकर राजनीतिक विचार अलग-अलग हैं, और आगामी चुनाव में भी आईवीएफ के एक मुद्दा बनने की संभावना है। ‘अलबामा सुप्रीम कोर्ट’ ने फरवरी 2024 में फैसला सुनाया कि आईवीएफ की प्रक्रिया के दौरान सुरक्षित रखे गए भ्रूण को संतान माना जाएगा। हालांकि यह निर्णय फिलहाल केवल अलबामा राज्य में लागू होता है, लेकिन इससे स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं। तीन जोड़ों ने संरक्षण केंद्र में सुरक्षित रखे गए भ्रूण नष्ट हो जाने के बाद लापरवाही से मौत के लिए मुकदमा दायर किया था, जिसपर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह फैसला दिया।
अदालत ने, राज्य के संविधान में “अजन्मे बच्चे के अधिकारों” की मान्यता का हवाला देते हुए लापरवाही से मौत होने पर मुकदमा दायर करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। फैसले के बाद अलबामा में दो प्रमुख आईवीएफ प्रदाताओं ने संभावित कानूनी जोखिम के कारण इस तकनीक पर रोक लगा दी है। मुख्य चिंता इस बात को लेकर है कि यदि सुरक्षित रखा गया भ्रूण जीवित नहीं रहता है तो क्या आईवीएफ करने वालों को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। कई रोगी, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता, शोधकर्ता और जनप्रतिनिधि आईवीएफ के संबंध में अलबामा के निर्णय को महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के बढ़ते क्षरण के रूप में देखते हैं।
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