Me Time: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी
आज अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और जापान जैसे देशों में महिलाएं अपने मी टाइम के लिए बहुत कांशेस हैं और इसे अपना हक मानती हैं। इन देशों में महिलायें औसतन हर हफ्ते अपने लिए कम से कम 4 से 5 घंटे का समय निकालती हैं। भारत में हालांकि मी टाइम को लेकर अभी तक महिलाओं के बीच कोई आंदोलनकारी सजगता नहीं है। लेकिन जब से हिंदुस्तान में महिलाओं के अपने निजी मोबाइल फोन हुए हैं, तब से वे हर दिन दो से ढाई घंटे फोन में सिर्फ अपने दोस्तों, सहेलियों, रिश्तेदारों और अपनी पसंद के लोगों के साथ मर्जी बातें करती हैं। भारत में मोबाइल फोन आने के बाद महिलाओं को अप्रत्यक्ष रूप से महीने में कम से कम 60 से 70 घंटे का मी टाइम मिलने लगा है।
इससे उन्हें काफी रिलैक्स मिलता है, किसी हद तक इससे उनका तनाव दूर होता है और मोबाइल ने उनके व्यक्तित्व का भी पसंदीदा विकास किया है। महिलाओं को आजादी और बराबरी दिलाने के लिए प्रयासरत संयुक्त राष्ट्र और यूनिसेफ जैसी उसकी सहयोगी संस्था, मी टाइम को भी महिलाओं की सामाजिक मुक्ति का बहुत जरूरी कारक मानती हैं इसलिए सारे नारीवादी संगठन और विचार आज महिलाओं के लिए जोरशोर से मी टाइम की मांग करती हैं। दरअसल आज की इस काम से बोझिल और तनाव से भरी जिंदगी में मी टाइम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी हो गया है। पूरी दुनिया में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के जानकार कहते हैं कि महिलाओं के लिए मी टाइम इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इसमें उन्हें अपनी वास्तविक आजादी महसूस होती है। जब वे अपने दिल के करीब दोस्तों के साथ मी टाइम गुजारती हैं तो वो पल उन्हें भरपूर तरीके से रिलैक्स करते हैं, उन पलों में वे घरेलू या प्रोफेशनल दबाव से पूरी तरह से मुक्त रहती हैं।
अपने मायके जाना खत्म
मॉडर्न लाइफस्टाइल में भारत जैसे देश में महिलाओं का अब अपने मायके जाना करीब करीब खत्म हो गया है या महज रस्मी रह गया है। जबकि एक दौर ऐसा था, जब शहरी महिलाएं भी साल में कम से कम दो बार एक एक पखवाड़े या महीने के लिए मायके जाती थीं और देहात में तो महिलाएं साल में औसतन तीन से चार महीने अपने मायके में गुजारा करती थीं। किसी खास तिथि, त्यौहार या शादी ब्याह के बहाने जब वे मायके जाती थीं तो उनके लिए पूरी तरह से मी टाइम होता था। मायके के लोग भी इस बात का बिना यह जाने कि यह उनका मी टाइम है, ख्याल रखते थे कि वे मायके में ससुराल वाली जिम्मेदारियों और दबाव से मुक्त रहें। इसलिए उन दिनों महिलाओं का मायके जाना उनको भरपूर मिलने वाला मी टाइम ही था।
आजादी और बराबरी के नाम पर आज बड़े पैमाने पर महिलाएं घर से बाहर निकलकर नौकरी कर रही हैं या अपना कोई काम कर रही हैं। निश्चित रूप से इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है और उनकी आर्थिक आजादी भी मजबूत हुई है। लेकिन नौकरी या कमाने के लिए अतिरिक्त रूप से सक्रिय रहने के कारण उनमें मेंटल स्ट्रेस बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसलिए आज मी टाइम लाइफस्टाइल का एक हिस्साभर नहीं है बल्कि स्वस्थ और तनावमुक्त जिंदगी के लिए जरूरी दवा बन गया है।
सुबह से शाम तक दर्जनों काम
साइंस मानती है कि जो महिलाएं खुद के लिए समय नहीं निकाल पातीं, लेकिन सुबह से शाम तक दर्जनों किस्म के कामों में व्यस्त रहती हैं, वे धीरे धीरे निगेटीविटी से भर जाती हैं। एक समय के बाद उनकी इस नकारात्मकता से उनका हर काम प्रभावित होने लगता है, उनके तमाम संबंध इस नकारात्मकता से टूटने बिखरने लगते हैं। क्योंकि लगातार काम करते रहने के कारण वे शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी बहुत थक चुकी होती हैं।
इसलिए मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि महिलाओं को मेंटली स्वस्थ रहने के लिए, ऊर्जा से लबरेज रहने के लिए और तनाव उनके आसपास न फटके इसके लिए ‘मी टाइम’ या ‘शी टाइम’ बहुत जरूरी होता है। मी टाइम या शी टाइम वह समय होता है,जब कोई महिला खुद अपने लिए कुछ वक्त बिताती है। घर परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियां और बराबरी व आधुनिकता के दबाव कारण पुरुषों द्वारा किये जाने वाले हर काम में हिस्सेदारी करती महिलाएं आज वास्तव में काम के बोझ से लद गई हैं। क्योंकि पूरी दुनिया में कामकाजी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा काम करना पड़ता है।
अमेरिका में पुरुषों के मुकाबले 10 घंटे ज्यादा काम
अमेरिका में हर हफ्ते कामकाजी महिलाओं को अपने कामकाजी पुरुषों के मुकाबले 10 घंटे ज्यादा, ब्रिटेन में 8 से 10 घंटे ज्यादा, ऑस्ट्रेलिया में 12 घंटे और हिंदुस्तान में तो करीब 16 घंटे ज्यादा काम करना पड़ता है। हर देश में कामकाजी महिलाएं अपने कामकाजी पतियों के मुकाबले ज्यादा काम करती हैं; क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी तो करनी ही पड़ती है, नौकरी करके घर आने पर भी काम करना पड़ता है और यह पुरुषों के मुकाबले तीन गुना तक ज्यादा होता है। इस कारण कामकाजी महिलाओं की सेहत, कामकाजी पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा खराब होती है। यह अकारण नहीं है कि दुनियाभर में कामकाजी महिलाएं बहुत चिड़चिड़ी होती हैं। जानकार कहते हैं उन्हें इस तनाव से छुटकारा पाने के लिए उनमें मी टाइम या शी टाइम बहुत जरूरी होता है।
सहेलियों के साथ जाने लगी हैं घूमने
आमतौर पर जब कोई पुरुष लगातार कामकाज से थक जाता है और परिवार के साथ कहीं जाकर घूम आता है तो वह काफी रिलैक्स और तरोताजा हो जाता है। लेकिन जब इसी तरह महिलाएं परिवार के साथ यानी पति व बच्चों के साथ घूमने जाती हैं तो वे लौटकर रिलैक्स या तरोताजा नहीं महसूस करतीं। क्योंकि जब वे परिवार के साथ कहीं घूमने फिरने जाती हैं, तो उस दौरान भी उन्हें बहुत सारी वही जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, जो जिम्मेदारियां वे घर में रहते हुए निभाती हैं।
इसलिए पश्चिम के देशों में अब बड़ी संख्या में महिलाएं पर्यटन करने अपनी सहेलियों या दोस्तों के साथ जाने लगी हैं या फिर ट्रेवल एजेंसियां उनके लिए स्पेशल पैकेज निकाल रही हैं। क्योंकि जब महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ घूमने फिरने जाती हैं या गप्प मारती हैं तो वे बहुत रिलैक्स व तरोताजा महसूस करती हैं। जबकि घर परिवार में रहते हुए आराम करना या परिवारजनों के साथ घूमने फिरने जाना भी उन्हें क्वालिटी रिलैक्स और आराम नहीं दे पाता। इसलिए इस 21वीं सदी में पूरी दुनिया में महिलाओं की आजादी और उनके लाइफस्टाइल के लिए मी टाइम बहुत जरूरी हो गया है।