Global Health Agenda: सरकार को ग्लोबल यूथ हेल्थ एजेंडा लागू करने की जरूरत
संयुक्त राष्ट्र का रोजगार के प्रति अधिकार आधारित दृष्टिकोण, मुफ्त शिक्षा, संसाधनों और मूलभूत ढांचे पर युवाओं की भविष्योन्मुख भागीदारी, यही है दुनिया का ग्लोबल हेल्थ यूथ एजेंडा 2030। इसी के नक्शेकदम पर चलकर हम आने वाली पीढ़ियों को आज से कहीं ज्यादा बेहतर दुनिया सौंप पाएंगे। इसलिए हर देश को ग्लोबल यूथ हेल्थ एजेंडा लागू करने के लिए ईमानदारी से बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा। युवाओं की शिक्षा में ही नहीं बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में कौशल, विकास और सकारात्मकता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से भरपूर रूप में शामिल करना होगा।
इस एजेंडे को सबसे ज्यादा जरूरत भारत में लागू किए जाने की है जिससे न सिर्फ भारतीय युवा रोजगार के तनाव से मुक्त होंगे बल्कि यह सुविधा उन्हें सामाजिक तनाव से भी बचायेगी। कोई देश जब अपने युवाओं पर निवेश करता है तो वह निवेश उसके लिए हमेशा फायदेमंद साबित होता है। युवाओं पर किया गया हेल्थ निवेश न सिर्फ देश को बड़े पैमाने पर आर्थिक लाभ देता है बल्कि यह देश की कामकाजी दुनिया को स्थिर और ज्यादा व्यवस्थित बनाता है।
अगर हम युवाओं को बेहतर शिक्षा, बेहतर रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य मुहैया कराएंगे तो समाज की कई कुरीतियां, समाज के कई कलंक स्वतः मिट जाएंगे। बाल विवाह, बाल मजदूरी और बच्चों की तस्करी और कुपोषण जैसी समस्याएं अपने आप कम होंगी या खत्म हो जाएंगी। इसलिए इस एजेंडे के लक्ष्य को हासिल करना जरूरी है।
2025 तक चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी अर्थव्यवस्था की वैश्विक संस्थाओं का अनुमान है कि भारत वर्ष 2025 के अंत तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और मजबूत अर्थव्यवस्था बन जायेगा जिसका जीडीपी दुनिया के कुल जीडीपी का 6 फीसदी होगा। जाहिर है यह अनुमान हकीकत में तभी बदलेगा जब हमारे युवा स्वस्थ और सशक्त हों। मतलब यह कि उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से स्वस्थ होना होगा।
इसलिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित युवाओं के लिए ग्लोबल यूथ हेल्थ एजेंडा 2030 भारत के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि हर देश अपनी आने वाली पीढ़ियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पूरी सजगता के साथ भरपूर निवेश करे तभी हम दुनिया में इंसान की नस्ल को निरंतर बेहतर बनाते रहने के फर्ज को निभा पाएंगे। संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि दुनियाभर के युवाओं के लिए उनकी सारी मनपसंद शिक्षा मुफ्त हो।
हालांकि यह अभी तक कुछ यूरोपीय देशों को छोड़कर और कहीं भी संभव नहीं हुआ। ऐसे में अगर भारत सरकार युवाओं को मुफ्त नहीं, रियायती दरों पर भी शिक्षा उपलब्ध कराती है तो यह युवाओं के लिए सबसे बड़ी सौगात होगी। फिलहाल मोदी सरकार की योजना है कि अगर 2024 के बाद वह सत्ता में आती है तो युवाओं के लिए उच्च शिक्षा करीब-करीब मुफ्त किए जाने पर एक बेहद परिभाषित और रिसर्च मॉडल तैयार करने की कोशिश करेगी। यह तो भविष्य की योजना है। अगर इस पर अमल हो तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है।
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5 से 9 फीसदी युवाओं को सम्मानजनक वेतन
फिलहाल जो सरकार को करना चाहिए और करना होगा, वह यह कि युवाओं के लिए न सिर्फ जयादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएं बल्कि लोकतंत्र और खुलेपन के नाम पर जो गरीब, पिछड़े युवाओं का शोषण होता है, उसे अविलंब रोका जाए। देश का हर युवा नौकरी करना चाहता है। वह इसके लिए छटपटा रहा है।
यह भी सही है कि देश में सिर्फ 5 से 9 फीसदी युवाओं को सम्मानजनक वेतन और काम की स्थितियां व माहौल हासिल है। बाकी 90 फीसदी युवाओं में जितने युवा सरकारी नौकरियों या संगठित क्षेत्र में नौकरियां कर रहे हैं, वहां तो कामकाज और वेतनमान की तार्किक व्यवस्था है लेकिन 70 फीसदी से ज्यादा युवा बेहद अमानवीय और भारी शोषण की स्थिति और माहौल में नौकरी या कहें जो भी मिल गया वह जॉब कर रहे हैं। भारत में एक निश्चित प्रतिशत इंजीनियरों को, आईटी सेक्टर के विभिन्न कर्मचारियों को, बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले युवाओं को ही सम्मानजनक और संतोषजनक स्थितियों में काम करने का माहौल मिला है।
सरकार को युवाओं को ऐसे शोषण से बचाना चाहिए। आज दुनिया के ज्यादातर देशों में अपाहिज होने का मतलब अवसरों से वंचित होना नहीं है लेकिन भारत में बड़े पैमाने पर विकलांग युवा और ग्रामीण क्षेत्र की युवा महिलाएं जीविकोपार्जन के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। इस स्थिति से जितना जल्दी उबरा जाए, युवा भारत को आत्मनिर्भर बनाने, उसे सपनीले भविष्य और आत्मविश्वास से लबालब करने की भी ये स्थितियां योगदान करेंगी।
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जी जान से लगे हुए हैं युवा
दुनिया युवाओं की बदौलत ही ब्रह्मांड की सबसे खूबसूरत जगह है लेकिन इसे खूबसूरत और सपनीली बनाये रखने के लिए जरूरी है कि युवा तन और मन से स्वस्थ हों। कहने की जरूरत नहीं कि इसके लिए एक मजबूत और बहुआयामी स्वास्थ्य दृष्टिकोण की जरूरत है और संयुक्त राष्ट्र ने यही किया है दुनियाभर के युवाओं का ग्लोबल यूथ हेल्थ एजेंडा 2030 तय करके। दुनिया के लिखित इतिहास में शायद यह पहला ऐसा समय है जब युवा किसी भी समय से कहीं ज्यादा काम कर रहे हैं।
अपने घर, परिवार व दुनिया की बेहतरी के लिए युवा जी जान से लगे हुए हैं। इस समय पूरी दुनिया में युवाओं की आबादी 1 अरब 80 करोड़ है। इसमें सबसे ज्यादा 20 फीसदी युवा अकेले भारत में हैं। इसलिए ग्लोबल यूथ हेल्थ एजेंडा बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है, खासकर भारत के नजरिये से। भारत में 15 से 29 साल के युवाओं की तादाद आज करीब 40 करोड़ है जो यूरोप के दर्जनों देशों की साझी आबादी से भी ज्यादा है। ऐसे में भारत के पास विकास की सर्वाधिक संभावनाएं हैं क्योंकि किसी भी देश में सबसे ज्यादा उत्पादक वर्ग युवा ही होता है।
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