Jat Politics In Haryana – भाजपा के थिंक-टैंक ने भांप लिया और सफलता मिली
Jat Politics In Haryana: हरियाणा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए काफी चौंकाने वाले रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को अभी तक यह समझ नहीं आ रहा है कि जिस प्रदेश में उससे सत्ता हासिल करने की सबसे ज्यादा उम्मीद थी, उसी में उसे करारी हार का सामना भी करना पड़ेगा। हरियाणा की हार के पीछे माना जा रहा है यहां पार्टी को जाट पॉलिटिक्स ने डुबो दिया है। पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने अपनी जिद के सामाने आलाकमान को झुकने पर मजबूर किया और अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलवाई इसी का नतीजा है कि राज्य में पार्टी इस मुकाम पर खड़ी है।
असुरक्षा का भाव आ गया
चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने जाट कम्युनिटी की तरफ जिस तरह का झुकाव और एग्रेशन दिखाना शुरू कर दिया था, उसे देखकर ओबीसी, ब्राह्मण, पंजाबी, वैश्य और कुछ हद तक एससी समुदाय खुद को अलग-थलग महसूस करने लगी थी। कांग्रेस की इस पॉलिटिक्स से इन बिरादरियों के मन में कहीं न कहीं असुरक्षा का भाव भी आ गया। इसे भाजपा के थिंक-टैंक ने भांप लिया। उसके बाद लगातार शैलजा के अपमान और उपेक्षा के मुद्दे को उठाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि जाटों को छोड़कर दूसरे वर्गों का बड़ा हिस्सा अपनी नाराजगी को छोड़ते हुए भाजपा के साथ आ गया। करनाल की असंध सीट से हारे कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विधायक शमशेर सिंह गोगी ने भी पार्टी की पराजय की यही वजह बताई।
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शैजला और हुड्डा का विवाद नहीं सुलझा पाई पार्टी
दूसरी ओर कांग्रेस के रणनीतिकार, खासकर हुड्डा कैंप, वोटिंग के दिन तक शैलजा से जुड़े मुद्दे का कोई ऐसा हल नहीं निकाल पाया जो पार्टी को हो रहे नुकसान को रोक ले। कुछ हद तक इसके लिए उनका ओवर कॉन्फिडेंस भी जिम्मेदार रहा। अब नतीजा सबके सामने है। प्रत्याशियों के ऐलान से लेकर चुनाव प्रचार तक, कांग्रेस का जोर 22 से 25 % जाटों और 20 से 22% SC मतदाताओं पर रहा। इसके मुकाबले भाजपा ने अपनी गैर-जाट पॉलिसी पर चलते हुए 30 से 32% ओबीसी, 9 से 10% पंजाबी, 8 से 9% ब्राह्मण वोटरों पर फोकस किया।
दोनों दलों के 50% जाट जीते
कांग्रेस ने 90 सीटों में से 27 पर जाट बिरादरी के प्रत्याशी उतारे। इनमें से 13 जीते। गैर-जाट की राजनीति करने वाली भाजपा ने 16 सीटों पर जाट नेताओं को मौका दिया। इसमें उनके 6 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। 13 सीटों पर दोनों पार्टियों के जाट प्रत्याशियों आमने-सामने थे। इनमें से 9 सीटें कांग्रेस और 4 भाजपा ने जीतीं।
BJP ने हुड्डा के गढ़ में लगाई सेंध
भाजपा ने इस बार हुड्डा का गढ़ कहे जाने वाले सोनीपत जिले की 6 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की। यहां की खरखौदा और गोहाना सीट तो भाजपा ने पहली बार जीती। 2014 और 2019 की मोदी वेव में भी पार्टी ये दोनों सीटें नहीं जीत पाई थी। सोनीपत की बची हुई 2 में से गन्नौर सीट पर भी भाजपा के बागी देवेंद्र कादियान विजयी रहे। हुड्डा के इस गढ़ में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर विजय मिली।
जाट प्रत्याशियों के सामने गैर जाट कार्ड
11 सीटें ऐसी थी जहां कांग्रेस के जाट उम्मीदवारों के सामने भाजपा ने दूसरी बिरादरियों के प्रत्याशियों उतारे। भाजपा ने ऐसी 4 सीटों पर ब्राह्मण, 2 पर वैश्य और 1-1 सीट पर बिश्नोई, बैरागी, गुर्जर, सैनी व सिख चेहरे को मौका दिया। इन 11 में से 8 सीटें भाजपा की झोली में गईं। कांग्रेस के जाट प्रत्याशियों सिर्फ 3 सीट पर जीत पाए। जाट बाहुल्य उचाना, गोहाना व पलवल में भाजपा का गैर जाट कार्ड फिट बैठा। अन्य पार्टियों की बात करें तो इनेलो के दोनों विधायक जाट बिरादरी के हैं।
इस बार विजयी रहे 3 निर्दलीय में से भी 2 जाट कम्युनिटी से ताल्लुक रखते हैं। 3 सीटें ऐसी भी रहीं, जहां भाजपा ने जाट बिरादरी को टिकट दिए और उनके सामने कांग्रेस ने दूसरी बिरादरी को टिकट दिया। उसमें 1 सीट पर पंजाबी, 1-1 सीट पर ब्राह्मण और मुस्लिम उम्मीदवार उतारा। इनमें से दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं, जबकि एक भाजपा के खाते में गई।
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17 ओबीसी विधायकों में से 14 भाजपा के
30% आबादी वाली ओबीसी समुदाया पर भाजपा और कांग्रेस का बराबर फोकस रहा। दोनों दलों ने ओबीसी के 21-21 प्रत्याशियों उतारे। 14 सीटों पर तो दोनों पार्टियों के उम्मीदवार ओबीसी बिरादरी के थे। इस बिरादरी के जो 17 विधायक बने, उनमें 14 भाजपा और 3 कांग्रेस के हैं। रानियां सीट ऐसी रही, जहां दोनों दलों ने ओबीसी उम्मीदवार उतारे थे। यहां बाजी इनेलो के अर्जुन चौटाला मार ले गए जो जाट बिरादरी से हैं। SC वोटर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा में बंट गए। अनुसूचित जाति (एससी) के लिए रिजर्व 17 सीटों में से कांग्रेस ने 9 और भाजपा ने 8 जीतीं। इस बार मुस्लिम बिरादरी के जो 5 विधायक बने हैं, वह पांचों कांग्रेस के हैं।
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