Wayanad Landslide- पश्चिमी घाट में सबसे ज्यादा ढलानी इलाका
Wayanad Landslide: केरल के वायनाड जिले में आए भूस्खलन की वजह से अब तक कुल 167 लोगों की मौत हो गई है। जिला प्रशासन का कहना है कि इस आपदा में 219 लोग घायल हुए हैं। यह आंकड़ा अभी और भी अधिक बढ़ सकता है। 2014 में महाराष्ट्र में भी भूस्खलन की घटना हुई थी। इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार भौगोलिक कारणों को बताया जा रहा है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्टडी के मुताबिक केरल के पूरे क्षेत्रफल का 43% जमीन भूस्खलन संभावित क्षेत्र है। इडुकी की 74% और वायनाड की 51% जमीन पहाड़ी ढलान हैं। यानी भूस्खलन की आशंका हमेशा रहती है। 1848 वर्ग किलोमीटर के केरल में सबसे ज्यादा ढलानी इलाका पश्चिमी घाट में हैं। पश्चिमी घाट यानी वायनाड, कोझिकोड, मल्लपुरम, इडुकी, कोट्टायम और पत्थन्मथिट्टा जिला। इन जिलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन होता है।
2019 में भी आया था भूस्खलन
साल 2019 में कुल मिलाकर केरल के आठ जिलों ने 80 भूस्खलन हुए। वो भी सिर्फ तीन दिन में। इसमें 120 लोग मारे गए थे। 2018 में दस जिलों 341 बड़े भूस्खलन हुए। मानसून में हर वर्ष अधिकतम 4000 और न्यूनतम 2000 मिलीमीटर बारिश। यानी सामान्य से 8 गुना ज्यादा पानी यदि कहीं भी जमा होगा तो पत्थर पर बिखर जाएगा। यही है केरल के वायनाड समेत 5 जिलों की हकीकत। यूं तो केरल को देवताओं का राज्य कहा जाता है, लेकिन जब प्राकृति और विज्ञान दोनों को ताक पर रख दिया जाए तो मौत का तांडव सामने आता है।
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तेजी से जंगलों का सफाया हो रहा है
केरल में 2018 से लगातार भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। इसकी दो बड़ी वजह हैं, पहली-तेजी से जंगलों का सफाया, दूसरी-भूगर्भविज्ञानियों की रिपोर्ट की अनदेखी। साल 2018 में भी केरल में इस तरह की घटनाएं हुई थी। उस दौरान भी बहुत अधिक बारिश के कारण भूस्खलन हुआ था। 2014 में महाराष्ट्र में भी भूस्खलन की घटना हुई थी। जियोलॉजिस्ट के अनुसार सड़क के निर्माण और अन्य विकास कार्यों के लिए ढलानों को काटा जा रहा है। यह भी एक बेहद अहम कारक है जिस कारण मिट्टी नीचे की तरफ खिसक रही है। लेकिन समस्या यह है कि 2019 की रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो नहीं दी। इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर कहा गया भूस्खलन को लेकर यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। एक्सपर्ट ने बताया कि इस हिस्से में भारी बारिश होती है। लगभग 2 हजार एमएम तक बारिश होती है। वैसे हालत में अगर हम ढलान को सुरक्षित नहीं करेंगे तो इस तरह की घटनाएं होगी ही।
242 लैंडस्लाइड वाले केस आइडेंटिफाई हुए
साल 2018 के बाद 2019 में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट दीपा शिवदास और उनकी टीम ने वायनाड को लेकर तैयार की थी। उन्होंने रिपोर्ट में बताया था कि वायनाड जिले में 242 लैंडस्लाइड वाले केस आइडेंटिफाई हुए हैं। इस कारण यहां के ढलान थोड़े सेंसेटिव हैं। यानी, विकास और निर्माण नीतियां बनाने वालों के पास घटना से पहले ही एक दस्तावेज था जिसमें यह क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील है। यदि जिम्मेदार अफसर और सरकार इस रिपोर्ट को देखते तो वायनाड के 360 वर्ग किलोमीटर का अतिसंवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र में खासकर आवास निर्माण को लेकर कोई विशेष कदम उठाते।
सड़क के निर्माण और अन्य विकास कार्यों के लिए ढलानों को काटा जा रहा है। यह भी एक बेहद अहम कारक है1 जिस कारण मिट्टी नीचे की तरफ खिसक रही है लेकिन समस्या यह है कि 2019 की रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो नहीं दी। इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर कहा गया कि भूस्खलन को लेकर यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। इस हिस्से में भारी बारिश होती है। लगभग 2 हजार एमएम तक बारिश होती है। वैसे हालत में अगर हम ढलान को सुरक्षित नहीं करेंगे तो इस तरह की घटनाएं होगी ही।
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अकेले इडुकी में 143 भूस्खलन
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की साल 2021 की स्टडी के मुताबिक केरल के पूरे क्षेत्रफल का 43 फीसदी हिस्सा भूस्खलन संभावित क्षेत्र है। इडुकी की 74 फीसदी और वायनाड की 51 फीसदी जमीन पहाड़ी ढलानें हैं। यानी भूस्खलन की आशंका बहुत ज्यादा है। 1848 वर्ग किलोमीटर के केरल में सबसे ज्यादा ढलानी इलाका पश्चिमी घाट में हैं। यानी वायनाड, कोझिकोड, मल्लपुरम, इडुकी, कोट्टायम और पत्थन्मथिट्टा जिला। इन जिलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन के मामले सामने आते हैं।
साल 2019 में केरल के आठ जिलों ने 80 भूस्खलन की घटनाएं देखी थीं। सिर्फ तीन दिन में इनमें 120 लोग मारे गए थे। 2018 में दस जिलों 341 बड़े भूस्खलन हुए। अकेले इडुकी में 143 भूस्खलन में 104 लोगों की मौत हो गई थी। पहले केरल में ऐसी घटनाएं कम होती थी। लेकिन कुछ वर्षों से यह तेजी से बढ़ी हैं। साल 2019 में वायनाड के कुरिचियामला इलाके में 4000 मिलिमीटर बारिश हुई थी। जबकि एक दशक में होने वाली बारिश का औसत ही 2200 मिलिमीटर है। मॉनसून के मौसम में वायनाड कई बार 2000 मिलिमीटर से ज्यादा बारिश बर्दाश्त करता है। इसकी वजह से मिट्टी सैचुरेट हो जाती है। जिससे वह कटती है। और भूस्खलन होते हैं।
वेस्ट से ईस्ट की तरफ बहती हैं नदियां
वायनाड में ज्यादातर लैटराइट मिट्टी है। यानी बेहद कमजोर और कटने वाली। ये अगर बारिश से सैचुरेट होती है, तब इसका वजन बढ़ता है। लेकिन ताकत खत्म होती है। फिसलती है। नेशनल सेंटर फॉर अर्थ स्टडीज ने करीब एक दशक पहले केरल के एक प्राकृतिक आपदा जोन का नक्शा बनाया था। तब जो इलाका सुरक्षित था अब वो खतरनाक हो चुका है। वायनाड की जितनी भी नदियां है वो वेस्ट से ईस्ट की तरफ बहती है। ये नदियां मानसून पर निर्भर है। हिमालय की तुलना में इस हिस्से में काम करना अधिक आसान है। हिमालय के क्षेत्र में चट्टानों का स्वरूप लगभग हर किलोमीटर के बाद बदल जाता है। लेकिन इस जगह पर ऐसी बात नहीं है। इन जगहों पर नदियों का प्रवाह 2 बातों से तय होता है। पहला ढलान से दूसरा बारिश से।
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बारिश से बढ़ जाता है नदी का प्रवाह
नदी के प्रवाह में बारिश से तेजी आती है। ऐसे हालत में हमें यह पता होना चाहिए कि कौन सा क्षेत्र प्रभावित होगा और कौन सा क्षेत्र नहीं होगा। केरल में लोग पढ़े लिखे हुए हैं लेकिन क्यों वो इन बातों को नहीं समझ पाए। केरल को इस मामले में एक माइल स्टोन बनाने की जरूरत थी। वायनाड के व्यतीरी में 2018-19 में जो लैंडस्लाइड हुए, उनमें से 41 फीसदी ढलानों पर बने घरों के आसपास हुए। 29 फीसदी सड़कों के किनारे और 17 फीसदी व्यावसायिक जमीनों के आसपास हुए। 10 फीसदी पेड़-पौधों वाले इलाके में हुए। सिर्फ 3 फीसदी जंगल में, यानी जमीन के उपयोग में बदलाव के बाद ही इस तरह की प्राकृतिक मुसीबत आती है। ढांचागत विकास के नाम पर बेतरतीब निर्माण ही ऐसी आपदाओं में बदल जाती है।
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