Hindu Kush Himalayan Region – खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए जरूरी है वैकल्पिक खेती
Hindu Kush Himalayan Region: विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन, प्रकृति की हानि और तीव्र खाद्य असुरक्षा की तिहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हिंदू कुश हिमालयीय देशों में खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हुये खेती को नया स्वरूप देने के लिए कृषि-पारिस्थितिकी पद्धतियों को अपनाने का आह्वान किया है। अंतरराष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) में आर्थिक संभाग के प्रमुख आबिद हुसैन ने कहा,‘‘यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि औद्योगिक कृषि पद्धतियां जिनमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और वनों की कटाई होती है जैवमंडल, मानव स्वास्थ्य और जलवायु के लिए विनाशकारी रही हैं। यह किसानों को समृद्धि प्रदान करने में विफल रही हैं।”
खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण
आईसीआईएमओडी करीब 3500 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हिंदू कुश हिमालयीय क्षेत्र के आठ देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत (चीन), भारत, म्यांमा, नेपाल और पाकिस्तान का एक अंतर-सरकारी संगठन है। उच्च ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं, मध्य पहाड़ियों और मैदानों को अपने में समेटे यह क्षेत्र लगभग दो अरब लोगों की खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र सहित दस प्रमुख नदियां इसी क्षेत्र से निकलती हैं। संगठन की ओर से शुक्रवार को जारी बयान के मुताबिक आईसीआईएमओडी ने बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत (चीन), भारत, नेपाल और पाकिस्तान के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर इस क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा पर चर्चा की। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान के प्रति अति संवेदनशील है।
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जलवायु संकट का समाधान
विशेषज्ञों ने रेखांकित किया, ‘‘वैश्विक स्तर पर एक चौथाई ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए खाद्य और कृषि क्षेत्र जिम्मेदार है, जो ऊर्जा उपयोग के बाद दूसरे स्थान पर है। खेती के वैकल्पिक मॉडल वास्तव में मिट्टी में कार्बन को अवशोषित में सक्षम हैं, इस प्रकार यह जलवायु संकट का समाधान बन जाता है।” हुसैन ने कहा, ‘‘जलवायु संकट के मद्देनजर यह जरूरी है कि हम हिंदू कुश हिमालय में कृषि को नया स्वरूप दें।”उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र वैश्विक औसत से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है। पर्वतों पर जमी बर्फ के पिघलने से जल आपूर्ति में परिवर्तन और अति वर्षा के कारण खाद्यान्न और कृषि पर असाधारण दबाव पड़ रहा है।
लचीली कृषि पद्धतियों का प्रारूप तैयार
विशेषज्ञों ने एक से तीन अक्टूबर तक यहां सतत खाद्य प्रणालियों के लिए जलवायु अनुकूल कृषि पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में ये विचार व्यक्त किए। आईसीआईएमओडी ने बताया कि इसी के साथ दो साल की कार्रवाई-अनुसंधान परियोजना, ग्रीन रेजिलिएंट एग्रीकल्चरल प्रोडक्टिव इकोसिस्टम्स (जीआरएपीई) का समापन हुआ। इसके तहत नेपाल के करनाली और सुदूरपश्चिम प्रांतों के सात जिलों में जलवायु-लचीली कृषि पद्धतियों का प्रारूप तैयार किया गया। जीआरएपीई परियोजना के अनुसंधानकर्ता कमल प्रसाद आर्यल ने कहा, ‘‘छोटे उद्यमियों के साथ मिलकर काम करते हुए, हमने दिखाया कि कैसे कम लागत वाले कृषि समाधानों से खेतों में मृदा की सेहत में सुधार लाया जा सकता है, जिससे बेहतर गुणवत्ता वाली पैदावार हो सकती है, जबकि किसानों की महंगी बाहरी चीजों पर निर्भरता कम हो सकती है।”
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