Silent is Fundamental Right: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20 (3) देता है ताकत
Silent is Fundamental Right: जिस तरह से हर भारतीय को संविधान के अनुच्छेद-19 (1) (ए) ने अभिव्यक्ति यानी बोलने का मौलिक अधिकार दिया है उसी तरह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20 (3) के तहत मौन रहने का भी हर भारतीय के पास मौलिक अधिकार है क्योंकि चुप रहने का अधिकार एक कानूनी सिद्धांत है। हर भारतीय को यह अधिकार कानून प्रवर्तन अधिकारियों, पुलिस या अदालत के अधिकारियों का जवाब देने से इनकार करने का अधिकार देता है।
मूलतः भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) में यह प्रावधान है कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता यानी किसी व्यक्ति को ऐसे सबूत या गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो खुद को दोषी ठहराए। इसे आमतौर पर ‘चुप रहने का अधिकार’ के रूप में भी जाना जाता है।

हिरासत की अवधि नहीं बढ़ायी
इस मामले में तेलंगाना हाई कोर्ट स्पष्ट रूप से कह चुका है कि अगर कोई आरोपी चुप है या संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा तो उसकी हिरासत की अवधि नहीं बढ़ायी जा सकती। पिछले दिनों तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को फटकार लगायी थी। इसमें कहा गया था कि कोई आरोपी चुप है या उसके मुताबिक संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी हिरासत अवधि बढ़ा दी जाए।
जस्टिस के. लक्ष्मण और जस्टिस के। सुजाना की बेंच ने एक आपराधिक मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। पीएफआई के एक सदस्य ने ट्रायल कोर्ट द्वारा उसकी रिमांड 5 दिन आगे बढ़ाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में कहा था कि एनआईए ने 13 जून, 2023 को आरोपी को अरेस्ट किया। इसके बाद 4 जुलाई, 2023 को कोर्ट ने 5 दिन की कस्टडी दे दी।
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5 दिन की अवधि के लिए रिमांड
एनआईए ने याचिकर्ता को 5 दिन की अवधि के लिए रिमांड पर लिया। इसके बाद 1 सितंबर, 2023 को एजेंसी ने दूसरा आवदेन देकर फिर 5 दिन की हिरासत मांगी। एनआईए ने इसकी वजह यह बतायी कि हिरासत में आरोपी संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा। वो ज्यादातर सवालों के जवाब पर शांत रहता है। इस मामले पर तेलंगाना हाई कोर्ट ने निर्णय सुनाया। भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) और मौन के अधिकार पर 180वीं रिपोर्ट भी जारी हो चुकी है
जिसमें मई 2002 में विधि आयोग ने अरुण जेटली को संबोधित करते हुए इस रिपोर्ट में लिखा था, ‘अनुच्छेद 20 (3) पर 180वीं रिपोर्ट भेज रहा हूं, भारत का संविधान और आरोपी व्यक्ति को चुप रहने का अधिकार है।’ चुप रहने का अधिकार आम कानून का एक सिद्धांत है।
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बोलने से इनकार कर दिया
आमतौर पर अदालतों या तथ्य न्यायाधिकरणों को पार्टियों व अभियोजकों द्वारा निष्कर्ष निकालने या आमंत्रित करने के प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। कोई संदिग्ध या आरोपी केवल इसलिए दोषी नहीं है क्योंकि उसने बोलने से इनकार कर दिया है। भारत का संविधान हर व्यक्ति को आत्म दोषारोपण के खिलाफ अधिकार की गारंटी देता है। किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। चुप रहने का अधिकार भारतीय नागरिक का एक बड़ा मजबूत और ताकतवर अधिकार है।
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