Praveen Nayak,CEO ‘Garbage Clinic’ : 200 से ज्यादा लोगों की टीम, सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ प्लस
Praveen Nayak,CEO ‘Garbage Clinic’ – ‘गार्बेज क्लिनिक’ के को-फाउंडर प्रवीण नायक जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी कहते हैं, लोगों के लिए कूड़ा है, कचरा-कबाड़ है, वो हमारे लिए गोल्ड, सोना…। सूखे कचरे को अलग-अलग कैटेगरी में छंटाई करने के बाद स्क्रैप डीलर्स को बेच देते हैं, जहां से रीसाइक्लिंग करने वाली कंपनियां इस कबाड़ को खरीद लेती है। जबकि गीले कचरे से कम्पोस्ट खाद बनाया जाता है। प्रवीण अपनी कहानी के बारे में कहते हैं – मैं 2015 से वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रिसर्च में जुट गया।
करीब दो साल तक इधर-उधर भागता रहा, लेकिन न तो किसी ने भरोसा किया और न ही काम मिला। तब तक मैंने कई लाख रुपए इधर-उधर जाने-आने में खर्च कर चुका था, पैसे बचे नहीं थे। बच्चों की फीस तक देने के पैसे नहीं थे। ये मेरा दोस्त अनुराग है। बचपन से हम दोनों ने साथ में पढ़ाई की थी। ये भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। प्रवीण कहते हैं, आलम ये हो चला था कि दिल्ली से वापस अपने गांव जाने तक की नौबत आ गई थी, लेकिन सही समय पर दोस्त ने मेरा हाथ थाम लिया।
वेस्ट मैनेजमेंट के बिजनेस का भूत सवार
2017 में मुझे अपनी पत्नी और बचपन के दोस्त अनुराग का सपोर्ट मिला। मुझ पर वेस्ट मैनेजमेंट के बिजनेस का ऐसा भूत सवार था कि करीब 5 साल के न्यूजपेपर के कतरन काटकर रखा हुआ था, जिसमें वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित एक्सपर्ट्स, साइंटिस्ट्स के स्टेटमेंट और नाम छपे होते थे। उसका मैं नोट्स बना लेता था। जब कंपनी की शुरुआत की तो इन लोगों से मिलना शुरू कर दिया, जिन्होंने सबसे ज्यादा हमें वेस्ट मैनेजमेंट की बारीकियों को समझने में मदद की। प्रवीण आज भी अपने आर्थिक हालात को बयां कर सहम जाते हैं। वो बताते हैं, बचपन से गरीबी झेलते हुए बड़ा हुआ। जब अपना बिजनेस शुरू किया, तो घर में कोई साथ देने के लिए तैयार नहीं था तो पैसा देना तो दूर की बात है। 2018 में जब मैंने ‘गार्बेज क्लिनिक’ नाम से कंपनी बनाई, तो दोस्त को बिजनेस पार्टनर बनने का न्योता दिया।
30 लाख के इन्वेस्टमेंट से कंपनी की शुरुआत
15 लाख उसने इन्वेस्ट किया और 15 लाख मैंने। 30 लाख के इन्वेस्टमेंट से कंपनी की शुरुआत की। इसके लिए मुझे अपनी पत्नी के जेवर तक बेचने पड़े, रिंग सेरेमनी की अंगूठियां भी बेच दी। मेरे दोस्त की ‘गार्बेज क्लिनिक’ में 50% की हिस्सेदारी है। प्रवीण नायक मेरठ के अलावा, नोएडा और महाराष्ट्र में वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं। नायक अपने शुरुआती दिनों की चुनौतियों के बारे में बताते हैं। वो कहते हैं, जब कबाड़ का काम करना शुरू किया, तो कोई काम ही नहीं दे रहा था। हमें न तो नगर निगम कूड़े के मैनेजमेंट का प्रोजेक्ट दे रही थी और न ही सरकार। 2 साल तक दिल्ली में इधर-उधर भटकता रहा, लेकिन काम नहीं मिला। जिसके बाद मैं महाराष्ट्र गया। यहां को-ऑपरेटिव सोसाइटी होने की वजह से मुझे अपना पहला प्रोजेक्ट लॉन्च करने का मौका मिला, लोगों ने काफी मदद की, ब्यूरोक्रेट्स का सहयोग मिला। बीड जिले से मैंने इसकी शुरुआत की, जिसका अच्छा रिस्पॉन्स रहा। उसके बाद नोएडा और फिर मेरठ में अपना प्रोजेक्ट लॉन्च किया। 2019-20 की बात है।
Read more : Ecoil, CEO Sushil Vaishnav : वेस्ट कुकिंग ऑयल खरीदा, बायोडीजल कंपनी को बेचा
गार्बेज क्लिनिक प्लांट खड़ा किया
चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में एक सेमिनार हो रहा था, जिसमें मैं आया था। इसी दौरान वीसी और यहां के कमिशनर से बातचीत हुई। यूनिवर्सिटी प्रशासन गार्बेज क्लिनिक प्लांट लगवाने के लिए राजी हो गया, मैंने प्लांट खड़ा किया। अब दिक्कत ये थी कि स्क्रैप डीलर्स हम पर भरोसा नहीं कर रहे थे, वो कूड़ा नहीं लेना चाह रहे थे, लेकिन सरकारी बॉडी के साथ काम करने के बाद लोगों ने पहचानना शुरू किया। आज हमारे देशभर में 18 से ज्यादा ‘गार्बेज क्लिनिक’ हैं, जहां इलाके के कूड़े को कलेक्ट किया जाता है। उसे वेयरहाउस में लाकर अलग-अलग कूड़े की कैटेगरी के हिसाब से छंटाई की जाती है। जो गीला कचरा होता है, उसे सबसे पहले पल्प राइजर मशीन में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। वजन करने के बाद इसे 28 दिनों के लिए बायोबीन एरोबिक मशीन में डाला जाता है,
जहां यह कंपोस्ट खाद के रूप में कंवर्ट हो जाता है। हमने कई शहरों में सीधे किसानों को जोड़ा है। किसान खराब सब्जियां हमें देते हैं, उसके बदले हम उन्हें कंपोस्ट खाद देते हैं। मेरे मानना है कि यदि कुछ किलोमीटर के दायरे में जगह-जगह वेस्ट मैनेजमेंट का सिस्टम इंस्टॉल किया जाए, तो कूड़े का पहाड़ खड़ा ही नहीं होगा। कई तरह के खर्चें भी बचेंगे। हमारे साथ अभी 200 से ज्यादा लोगों की टीम अलग-अलग लोकेशन पर काम कर रही है। कंपोस्ट खाद की मार्केटिंग के लिए हमारी टीम किसानों के पास जाकर उनमें अवेयरनेस भी लाती है। अभी कंपनी का सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ के करीब है।
अलग-अलग टोकरी में कबाड़ रखा जाता है
जिस तरह मॉल में हर तरह का सामान अलग-अलग कैटेगरी में रैक पर रखा होता है। उसी तरह से प्रवीण के ‘गार्बेज क्लिनिक’ में रैक पर अलग-अलग टोकरी में कबाड़ रखा जाता है। इसमें बोतल के ढक्कन से लेकर झड़े हुए बाल, टूटा बल्ब, चूड़ियां जैसी दर्जनों चीजें हैं। प्रवीण नायक के वेयरहाउस में ये शो रूम की तरह बना हुआ है, जिसमें 100 से ज्यादा तरह के कबाड़ रखे हैं। प्रवीण कहते हैं, जब दांत-आंख-कान का डॉक्टर हो सकता है।
इनके इलाज के लिए क्लिनिक हो सकता है फिर कूड़ा के प्रोपर ट्रीटमेंट के लिए क्यों नहीं। इसीलिए मैंने गार्बेज क्लिनिक नाम से कंपनी की शुरुआत की। वो कहते हैं, पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहा हूं, लेकिन 2017 में एक ऐसा हादसा हुआ जिसकी वजह से मैंने इंजीनियरिंग छोड़कर वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करना शुरू कर दिया। इसे ही अपनी जिंदगी और पेशा- दोनों बना लिया। प्रवीण बताते हैं, आपको भी याद ही होगा, गाजीपुर में कचरे के पहाड़ का एक हिस्सा ढह गया था। मेरे सामने ही इसमें दबने से 4 लोगों की मौत हो गई। मैंने उसी दिन ठान लिया कि अब इंजीनियरिंग नहीं करूंगा।
Read more – Meesho Online Shopping : ‘सबसे सस्ते’ को बनाया अपना USP
हादसे के बाद रिजाइन दे दिया
प्रवीण ने विप्रो समेत कई बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों के साथ 15 साल से अधिक समय तक काम किया है। वो कहते हैं, मध्य प्रदेश के छतरपुर से ताल्लुक रखता हूं। लोअर मिडिल क्लास से होने की वजह से पढ़ाई के साथ-साथ पैसा कमाने का भी प्रेशर था। मेरा बचपन से ही बिजनेस को लेकर दिमाग चलता था। आपको दो वाकया बताता हूं, 80 के दशक की बात है। उस जमाने में घर-घर टीवी नहीं हुआ करते थे। एक वीडियो डिस्प्ले लगता था और पूरे गांव के लोग देखने के लिए आते थे। मैंने अपने दरवाजे पर ही एक साइकिल स्टैंड बनाया था, इससे कुछ रुपए कमाए भी थे। फिर 10वीं करने के दौरान ही मैं लखनऊ से चंपक, नंदन की तरह उस जमाने में चाचा चौधरी जैसी कॉमिक्स किताबें आती थी,
उसे बेचा करता था। इसी पैसे से मैंने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और फिर 1993 में दिल्ली आ गया। 1500 रुपए महीने पर पहली नौकरी मिली। धीरे-धीरे कई बड़ी कंपनियों के साथ बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम किया। हालांकि, ये पहले मन में चल रहा था कि रिटायरमेंट के बाद कूड़े की रीसाइक्लिंग पर काम करूंगा, लेकिन गाजीपुर हादसे के बाद मैंने उसी दिन रिजाइन दे दिया और वेस्ट मैनेजमेंट में जुट गया।
- Rupinder Kaur, Organic Farming: फार्मिंग में लाखों कमा रही पंजाब की महिला - March 7, 2025
- Umang Shridhar Designs: ग्रामीण महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर, 2500 महिलाओं को दी ट्रेनिंग - March 7, 2025
- Medha Tadpatrikar and Shirish Phadtare : इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस - March 6, 2025