आगे बढ़ने के लिए दूसरों की ओर देखना हानिकारक
खुशी, सफलता, शांति, दुख यहां तक कि प्यार के मामले में भी हम अपनी तुलना दूसरों से करने से नहीं बच पाते। भले ही हम कितने सफल हों मगर हमें हमेशा दूसरे आदमी की सफलता अपने से 21 ही लगती है। न जाने क्यों हमारे दिमाग का गणित इस किस्म का है कि उसमें तुलना का फार्मूला इनबिल्ट होता है। भले ही आपके बच्चे ने 97 प्रतिशत नंबर हासिल किये हों लेकिन उसके दोस्त ने यदि 97.05 प्रतिशत अंक हासिल किये हैं तो हमारा फोकस 97 प्रतिशत पर नहीं बल्कि 97.5 पर ही रहता है और हम आह भरकर कह उठते हैं, काश! हमारे बच्चे के भी इतने मार्क्स आते।
घर में हम बच्चों के बीच तुलना करते हैं, जिससे बच्चों को बुरा लगता है लेकिन हम फिर भी ऐसा करते हैं; क्योंकि हमें लगता है कि तुलना के द्वारा ही वह ज्यादा हासिल कर सकते हैं और तुलना ही उन्हें अपने भीतर की कमी को उभारकर उसे अपने लक्ष्य पर फोकस कर सकती है। दफ्तर में भी हम हमेशा दूसरों के वेतन, उनके भत्तों, उनके काम की प्रकृति और उन्हें मिलने वाले बोनस की तुलना खुद को मिलने वाले लाभ से करते हैं। यहां भी हम हमेशा खुद को दूसरों से कमतर ही पाते हैं और इस बारे में सोचकर और निराश होते हैं।
IIT और IIM में एडमिशन की चाहत
यह कितने दुख की बात है कि हम अपने को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा दूसरों की ओर ही देखते हैं। महिलाएं एक लविंग कपल को देखकर अपने पति से या प्रेमी से उसकी तुलना करती हैं। उन्हें अपनी फ्रेंड हर मामले में अपने से ज्यादा लकी लगती है। अपने बच्चों की तुलना हम घर पर ही नहीं बल्कि अपने पड़ोसियों के बच्चों से करते हैं कि कैसे वह आईआईटी और आईआईएम में एडमिशन पा चुके हैं। आप भले ही कितनी सुंदर दिख रही हों लेकिन आपको अपने सामने कोई स्मार्ट लेडी दिख जाए तो आप उसे देखकर ठंडी आह भरने लगती हैं कि काश! मैं भी इतनी स्मार्ट होती। अपने पड़ोसी की बड़ी कार देखकर यहां भी आप अपनी छोटी कार का गम मनाने लगती हैं।
किसी न किसी से नापने की आदत
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि तुलना हमें निरंतर आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती हैं लेकिन यह हमें मायूस भी करती है। हमें बचपन से ही इस ढंग से पाला-पोसा जाता है कि हम कदम-कदम पर किसी न किसी से नापे जाते हैं और जगह-जगह हमारी तुलना दूसरों से की जाती है। अब सोशल मीडिया को ही देख लो, यहां भी आलम यह है कि तुलना यहां कई गुना बढ़कर सामने आती है।
जो लोग कहीं बाहर जाकर छुट्टियां मनाने के बाद अपनी फोटो पोस्ट करते हैं, अपने हँसी खुशी के लम्हों और लव लाइफ को दूसरों के साथ शेयर करते हैं, वह तो अपने को यह जताते हैं कि वह कितने खुश हैं लेकिन जब वह यह सब शेयर करते हैं तो दूसरों पर इसका पॉजीटिव नहीं बल्कि निगेटिव असर होता है, इस बात को विभिन्न अध्ययन भी बार-बार कह रहे हैं। यहां पर भी दूसरों के साथ तुलना चलती रहती है। दूसरों को खुश और पॉजीटिव मूड में देखकर हममें निगेटिविटी भरती जाती है। यहां भी लोग एक दूसरे से तुलना करते हैं और उनकी फोटो देखकर खुश होने की बजाय हम उनमें कमियां निकालने लगते हैं और उनके जीवन से अपने जीवन की तुलना करने लगते हैं और इसका नतीजा क्या होता है, दूसरों की खुशी हमें दुख देती है और हमें निराशा के अंधकार की ओर धकेलती है।
शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में वृद्धि
तुलना द्वारा किसी को भी मोटीवेट किया जा सकता है। यदि तुलना का बु़द्धिमानी से इस्तेमाल किया जाए तो लोगों की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में काफी वृद्धि की जा सकती है। यह तुलना ही है, जो किसी को प्रथम, द्वितीय या तृतीय की श्रेणी में लाकर खड़ा करती है। तुलना के द्वारा ही लोग किसी की योग्यता और उसकी प्रतिभा को जांच-परख सकते हैं। इसे आम जीवन से जुड़ी छोटी सी एक बात से ही समझा जा सकता है। बाजार में फल या सब्जी खरीदते समय भी हम अच्छी चीजों की ही खरीदारी करते हैं, जाहिर है अच्छी और खराब के बीच भी तुलना के द्वारा ही हम अच्छी को चिन्हित कर पाते हैं।
प्रेरणा की वजह बनाएं
प्रकृति का यही नियम है, जो मजबूत और ताकतवर होता है, वही जीवन में टिक सकता है। लेकिन हमारे साथ समस्या तो यह है कि हम इस तुलना को अलग-अलग चीजों से न करके एक जैसी चीजों के बीच जब तुलना करते हैं तो हमारे मनोविज्ञान का सारा गणित गड़बड़ा जाता है। हमें इससे निराशा होती है। जब हमारी तुलना किसी से की जाती है तो हमें बुरा लगता है। तुलना किसी की उन्नति और उसके लिए उत्प्रेरक का काम कर सकती है। लेकिन इससे जुड़ा सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि तुलना हमें अपने प्रति शंका से भर देती है और यह हमें डिमोटिवेट करती है, तुलना का यही सबसे खराब पक्ष है। इसलिए अब अगर कोई आपकी किसी से तुलना करें तो अपनी पहचान और अपनी कार्यक्षमता पर खुद कोई संदेह न करें। यदि सचमुच ऐसा है तो भी तुलना से निराश होने की बजाय इसे अपने लिए प्रेरणा की वजह बनाएं। क्योंकि हर व्यक्ति बुद्धिमान होता है।
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