Gram Farming: जल प्रबंधन, मररोग नियंत्रण और छिड़काव का विशेष महत्व
Gram Farming: रबी की फसल को पानी की सबसे कम आवश्यकता होती है, कम से कम उत्पादन लागत और जमीन की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने वाले चने की फसल के बारे में अब किसान पहले की तुलना में ज्यादा जागरूक हो गये हैं। पहले इस फसल की उपेक्षा की गई और बाजार भाव अच्छा न होने के कारण इससे ज्यादा उम्मीदें भी नहीं थीं। हालांकि, अब बाजार भाव भी शानदार मिल रहा है और अच्छी पैदावार के लिए कुछ बातों पर अमल किया जाए तो रिकॉर्ड पैदावार भी संभव है। चने की पैदावार बढ़ाने वाली तकनीक में इसकी खेती के लिए हर चीज महत्वपूर्ण है। चने की खेती में जल प्रबंधन, मररोग नियंत्रण और छिड़काव का विशेष महत्व है। इसकी खेती के लिए मध्यम से भारी गहरी जमीन को अच्छा माना जाता है। बहुत हल्की जमीन में चने का जल प्रबंधन सही तरीके से नहीं हो पाता है, इसलिए पैदावार उतना नहीं होती जितनी उम्मीद रहती है।

चने की किस्में
जॅकी, विजय, दिग्विजय, विराट, फुले- विक्रम, राजविजय, कांचण
प्रति एकड़ बीज की मात्रा पर दाने का आकार निर्भर होता है। बड़े आकार के दाने के लिए प्रति एकड़ बीज अधिक लगेंगे वहीं छोटे आकार के लिए प्रति एकड़ बीज कम लगेंगे। आमतौर पर छोटे दाने वाले चने के लिए विजया और तस्तम 20 से 25 किलो प्रति एकड़, इसी तरह मध्यम आकार दानों के लिए 25 से 30 किलो प्रति एकड़ जॅकी का भी प्रयोग किया जा सकता है। वहीं बड़े आकार के दाने चाहिए तो विशाल- दिग्विजय या तत्सम 30 से 35 किलो प्रति एकड़ बुवाई के अंतराल में लगेंगे। ध्यान रखें बुवाई के समय चने की दो कतारों के बीच 45 सेंमी की दूरी रखनी चाहिए, कई जगहों प्रयोग के लिए भारी व उपजाऊ जमीन पर बुवाई के समय 60 सेंमी की भी दूरी रखी जा सकती है। वहीं पौधे-से-पौधे की दूरी 10 सेंमी होनी चाहिए।
ध्यान रहे यदि ड्रिप पर रोपण करते हैं तो, ट्यूबों के दोनों ओर 8 से 12 इंच की दूरी पर रोपण करें। हो सके तो चने की बुवाई बी.बी.एफ. विधि के अनुसार की जा सकती है, इसमें पांचवें या छठी कतार को नाली बनाने के लिए बिना बुवाई खाली छोड़ देना चाहिए, या दोहरी पंक्ति विधि से बुवाई कर सकते हैं जिसमें दो कतारों में रोपण कर तीसरी कतार को खाली छोड़ दिया जाता है। बी.बी.एफ. या पट्टा विधि का सबसे बड़ा लाभ है, बीजों की बचत, पैदावार में बढ़ोतरी, फसल लहलहाती रहती है, सूर्यप्रकाश मिलता है, छिड़काव और सिंचाई में सुविधा होती है। इसलिए बी.बी.एफ या पट्टा विधि उपयोग करना किसनों के लिए अधिक लाभदायक है।
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‘बीजोपचार’ करना सर्वोत्तम विकल्प
नुकसान होने के बाद उपाय करने से कोई लाभ नहीं होता है, और न ही नुकसान की भरपाई होती है और उसके नियंत्रण के लिए भी लागत ज्यादा लगती है। इसलिए भविष्य में होने वाले नुकसान को टालने के लिए ‘बीजोपचार’ करना सर्वोत्तम विकल्प है। चने की फसल में मररोग से बचने के लिए ट्रायकोबुस्ट डी.एक्स 5 ग्राम प्रति किलो बीज पर जरूर लगाएं। यदि आप बूस्टर बीज खरीदते हैं, तो बीज बैग में ट्रायकोबुस्ट का एक पैकेट होता है, उसमें बराबर मात्रा में पानी में मिलाकर बुवाई से पहले लगाना चाहिए तथा छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए
जिस भाग में कर्तनकीट (कट वर्म) या जमीन में अन्य कीटों का संक्रमण हो, वहां रिहांश 5 मिली प्रति किलो ट्रायकोबुस्ट के साथ पानी या रायझर के साथ मिलाकर लगाएं। यदि रासायनिक बीजोपचार करना हो तो केवल टिकाऊ 5 मिली प्रतिकिलो बीजों पर लगाएं।
प्रति एकड़ एक से डेढ़ बैग खाद
चने की जड़ों पर गाठें होती हैं, इसलिए इस फसल को नाइट्रोजन की कम जरूरत होती है, फिर भी फसल को नाइट्रोजन की आवश्यकता हो तो आप जमीन, उर्वरता और चने बढ़ता कैसा है, के आधार पर खादों के ग्रेड का चयन करना चाहिए। इसके अलावा बुवाई के समय किसी भी खाद को प्रति एकड़ एक से डेढ़ बैग देना चाहिए। चने को बुआई के बाद नाइट्रोजन (यूरिया) न दें क्योंकि इससे अकारण वृद्धि होती है। चने की बुवाई इस प्रकार करनी चाहिए कि उर्वरकों(खाद) में नमी बनी रहे।
कम उपजाऊ जमीन, कम विकास – 20:20:0:13/24:24:0:8 में से एक
मध्यम जमीन मध्यम विकास – डी.ए.पी./12:32:16/14:35:14/10:26:26 में एक
भारी जमीन ज्यादा विकास – सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति एकड़ 2 से 3 बैग साथ में साथ में प्रति एकड़ 5 से 10 किग्रा रायझर- जी व एन.पी.के. डी.एक्स। 500 व ट्रायकोबुस्ट 500 ग्राम लाभकारी है।
25 से 30 दिन बाद देना चाहिए पानी
यह बहुत ही सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण बात है। क्योंकि जल प्रबंधन को लेकर कई किसान भ्रमित हो जाते हैं। यदि मिट्टी में नमी होने के दौरान चने की बुवाई की गई हो तो पहला पानी आवश्यकतानुसार 25 से 30 दिन बाद देना चाहिए। वहीं यदि गीली जमीन पर बुवाई की गई हो तो पहली सिंचाई 30 से 40 दिन में करनी चाहिए। इसके बाद ध्यान रखें कि जब चने में फूल आने शुरू हो जाएं तो सिंचाई बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। फूल आने पर पानी देने से फूल झड़ने लगते हैं और और फसल अधिक बढ़ने के कारण नष्ट हो जाती है। इसलिए जब फूल आने बंद हो जाएं तब आवश्यकता हो तो दूसरा पानी दें।
कटवर्म का प्रकोप
पिछले कुछ वर्षों में कई तहसीलों के शुष्क क्षेत्रों में बुवाई के 8 से 10 दिन बाद कटवर्म का प्रकोप बढ़ने लगता था और ये कीड़ें चने के पौधों की जड़ों या तनों को नष्ट कर देते थे। इस तरह का प्रकोप कई खेतों में बड़े स्तर पर देखने को मिला, यह भी पाया गया कि इस पर छिड़काव करने का भी कोई लाभ नहीं मिला। इस कटवर्म के नियंत्रण के लिए क्रीटा जि.आर या क्लोरोपायरीफॉस डस्ट / ग्रॅन्युअल प्रति एकड़ 5 से 10 किलो उपयोग करना चाहिए। ये डस्ट बुवाई से पहले खेत में छिड़क देना चाहिए और निराई-गुड़ाई की मिट्टी में मिला देनी चाहिए, और उसके बाद बुवाई/रोपण करना चाहिए। या ये डस्ट/ग्रॅन्युअल(पीसी) खाद के साथ मिलाकर बुवाई करें और बीजोपचार के लिए रिहांश का उपयोग करें।
चने पर छिड़काव कार्यक्रम
चने पर मररोग, जड़ रोग, सड़न रोकने के लिए जरूरत के अनुसार किटकनाशक + रायझर 40 मिली + पिक्सल 30 ग्राम
पहला छिड़काव (वृद्धि की अवस्था) – पांडा सुपर 30 मिली + टॉप अप 40 मिली + प्रोपीको 20 मिली + परिस 19:19:19 100 ग्राम या
कली अवस्था इमान 10 ग्राम + झेप 15 मिली + परिस 12:61:00 100 ग्राम
दूसरा छिड़काव (फूल आने पर ) – झेनॉप 15 मिली / रावडी 15 मिली + रायबा 5 मिली + सुखई 30 मिली (कोहरा होने पर ) + परीस 00:52:34 100 ग्राम
– तीसरा छिड़काव ( हानि पूर्ति अवस्था) – व्हीटारा प्लस 40 मिली + भरारी 7 मिली + विसल्फ 40 ग्रॅम + बिग बी 100 ग्राम या परिस 13:00:45 100 ग्राम, कोहरा से संरक्षण के लिए खेत में धुंआ/अलाव जलाएं।
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