Solar Energy Sector : लक्ष्य वर्ष 2030 तक 280 गीगावाट सौर क्षमता प्राप्त करना
Solar Energy Sector – भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र तेज़ी से विकास कर रहा है, PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के माध्यम से केवल एक वर्ष में 5.21 गीगावॉट की रूफटॉप सोलर एनर्जी जोड़ी गई है। हालाँकि, इस क्षेत्र को ग्रिड स्थिरता, भंडारण एकीकरण और वित्तीय व्यवहार्यता में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हाइब्रिड इनवर्टर और बैटरी स्टोरेज के साथ तकनीकी बाधाएँ, जटिल बिजली मूल्य निर्धारण संरचनाओं के साथ मिलकर सौर ऊर्जा अंगीकरण की गति को धीमा कर देती हैं। आगे की राह के लिये नवीन नीति कार्यढाँचे की आवश्यकता है जो तकनीकी मानकों, वित्तीय व्यवहार्यता और ग्रिड समर्थन तंत्र को शामिल करते हैं।
सौर क्षमता में वृद्धि और वैश्विक स्थिति:
भारत वैश्विक सौर ऊर्जा अग्रणी के रूप में उभरा है जो सौर ऊर्जा क्षमता में विश्व भर में चौथे स्थान पर है। देश ने अपने ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए अपने सौर आधार का तेज़ी से विस्तार किया है। यह विस्तार वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता तक पहुँचने के भारत के संकल्प का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। वर्ष 2018 की सौर ऊर्जा क्षमता 21.6 गीगावाट से बढ़कर जून 2023 तक 70.10 गीगावाट हो गई। भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 280 गीगावाट सौर क्षमता प्राप्त करना है, जो उसके 500 गीगावाट नवीकरणीय लक्ष्य का आधार होगा।
रूफटॉप सोलर पैनल क्रांति
वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना के शुभारंभ ने मध्यम और निम्न आय वाले परिवारों को लक्षित करते हुए आवासीय सौर ऊर्जा अंगीकरण को बढ़ावा दिया है। प्रतिष्ठानों को सब्सिडी देकर, यह सामर्थ्य को सुनिश्चित करता है और घरेलू स्तर पर ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है। यह विकेंद्रीकृत प्रयास ग्रिड लोड और उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा सुलभता में सुधार करता है। 1 करोड़ घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाने के लिये 75,021 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। परिवारों को प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिल सकती है और अतिरिक्त बिजली की बिक्री से प्रति वर्ष 17,000-18,000 रुपए की आय हो सकती है। PLI योजना के तहत घरेलू सौर विनिर्माण को बढ़ावा: भारत उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के माध्यम से आयात पर निर्भरता को कम कर रहा है, जिससे उच्च दक्षता वाले सौर PV मॉड्यूल के बड़े पैमाने पर विनिर्माण को बढ़ावा मिल रहा है। यह पहल भारत का आत्मनिर्भर भारत विज़न का समर्थन करती है और सौर ऊर्जा आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करती है।
इसने रोज़गार सृजन और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में दीर्घकालिक निवेश को भी बढ़ावा दिया है। 24,000 करोड़ का PLI परिव्यय, 47 गीगावाट से अधिक मॉड्यूल विनिर्माण को समर्थन प्रदान करेगा। अकेले Tranche-II ने 93,041 करोड़ का निवेश आकर्षित किया, जिससे 1 लाख से अधिक नौकरियाँ उत्पन्न हुईं। सोलर पार्कों की उपयोगिता-स्तर की क्षमता में वृद्धि: भारत बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था और कुशल भूमि उपयोग के माध्यम से ग्रिड-स्केल परिनियोजन प्राप्त करने के लिये अपने सोलर पार्कों का विस्तार कर रहा है। ये पार्क मेगा सोलर परियोजनाओं के लिये केंद्र के रूप में काम करते हैं, निवेश आकर्षित करते हैं और त्वरित क्षमता वृद्धि की सुविधा प्रदान करते हैं। ये पूर्व-विकसित बुनियादी अवसंरचना सुनिश्चित करके परियोजना जोखिम को भी कम करते हैं। सत्र 2025-26 तक 38 गीगावाट क्षमता वाले 50 सोलर पार्कों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। 11 पूर्ण पार्कों में 10,237 मेगावाट क्षमता पहले ही चालू हो चुकी है।
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प्रौद्योगिकी में नवाचार— फ्लोटिंग सोलर और स्मार्ट पैनल:
भारत कार्यकुशलता बढ़ाने और तैनाती स्थानों में विविधता लाने के लिये फ्लोटिंग सोलर, बाइफेसियल मॉड्यूल और स्मार्ट इनवर्टर जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपना रहा है। बड़ी परियोजनाओं और पायलट रूफटॉप्स पर बाय-फेशियल पैनलों और हाइब्रिड इनवर्टरों के अंगीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी आ रही है। फ्लोटिंग सोलर से भूमि पर बोझ कम होता है जबकि स्मार्ट तकनीक ग्रिड एकीकरण को बढ़ाती है। ये नवाचार स्थानिक और तकनीकी बाधाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये, 100 मेगावाट का रामागुंडम फ्लोटिंग सोलर प्लांट (तेलंगाना) भारत के सबसे बड़े प्लांटों में से एक है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के माध्यम से वैश्विक नेतृत्व और कूटनीति: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) को शुरू करने में भारत का नेतृत्व वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन में इसकी रणनीतिक भूमिका को दर्शाता है। ISA विकासशील देशों, विशेषकर अफ्रीका में सोलर पैनल की स्थापना को बढ़ावा देता है, जिससे भारत के कूटनीतिक और जलवायु नेतृत्व लक्ष्यों को समर्थन मिलता है। यह अंतर-राष्ट्रीय वित्त और नवाचार साझेदारी को आकर्षित करने में भी मदद करता है। 111 देश ISA में शामिल हुए, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करना है। SolarX चैलेंज– अफ्रीका चैप्टर धारणीय, किफायती सौर ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देता है।
भारत के सौर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे
भंडारण एकीकरण की उच्च लागत और सीमित व्यवहार्यता: बढ़ती सौर क्षमता के साथ, भंडारण के माध्यम से चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। हालाँकि, बैटरी भंडारण महंगा बना हुआ है, विशेष रूप से नेट मीटरिंग के तहत आवासीय उपयोगकर्त्ताओं के लिये, जिससे हाइब्रिड RTS प्रणाली आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बन जाती है। विद्युत मंत्रालय द्वारा हाल ही में दी गई सलाह के अनुसार, अनिवार्य भंडारण आवश्यकता के कारण रूफटॉप सोलर पैनल अंगीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी आने के बजाय इसकी गति धीमी हो सकती है। उदाहरण के लिये, 1 kWp RTS प्रणाली की लागत ₹65,000-75,000 है, लेकिन 2 घंटे का भंडारण जोड़ने पर लागत लगभग दोगुनी हो जाती है। भंडारण के साथ भुगतान अवधि दोगुनी हो जाती है; कुछ राज्यों में, यह वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाता है।
ग्रिड स्थिरता और अति-उत्पादन चुनौतियाँ
जैसे-जैसे सौर ऊर्जा का अंगीकरण बढ़ता है, विशेष रूप से (सूर्य के अधिकतम घंटों में) वितरण नेटवर्क को स्थानीय ओवर-इंजेक्शन और वोल्टेज अस्थिरता के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। वास्तविक काल की दृश्यता और नियंत्रण प्रणाली के बिना, डिस्कॉम विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा को कुशलतापूर्वक समायोजित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। इससे सौर ऊर्जा निवेश में कमी आ सकती है और यह हतोत्साहित हो सकता है। उदाहरण के लिये, सत्र 2022-2023 के दौरान पाँच बेलआउट के बावजूद, DISCOM (वितरण कंपनियों) का संचित घाटा लगभग ₹6.77 लाख करोड़ (€74.4 बिलियन) तक पहुँच गया। सौर ऊर्जा क्ष्त्रक की अकुशलता इसे और बढ़ा देगी।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की सलाह में ओवर-इंजेक्शन को कम करने तथा ग्रिड विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये 2 घंटे का भंडारण करने का आग्रह किया गया है, लेकिन कार्यान्वयन अभी भी सुस्त है। नीतिगत अनिश्चितता और लगातार विनियामक परिवर्तन: नेट मीटरिंग विनियमन, राज्य-स्तरीय टैरिफ नियमों में लगातार बदलाव और सब्सिडी संवितरण के संदर्भ में अनिश्चितता ने इस क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न कर दी है। नीतिगत अनिश्चितता और डिस्कॉम की ओर से भुगतान में विलंब के कारण निवेशक और उपभोक्ता हिचकिचाते हैं। इससे परियोजना की व्यवहार्यता और क्षेत्रीय विश्वास दोनों पर असर पड़ता है। कई राज्यों (जैसे: महाराष्ट्र, गुजरात) ने एक वर्ष के भीतर नेट मीटरिंग कैप को संशोधित किया। डिस्कॉम के विलंब को दूर करने के लिये विलंब भुगतान अधिभार नियम, 2022 पेश किये गए, जो अभी भी जारी है।
घरेलू विनिर्माण बाधाएँ और आयात निर्भरता
PLI प्रोत्साहनों के बावजूद, भारत का सौर विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी प्रारंभिक चरण में है, विशेष रूप से पॉलीसिलिकॉन और वेफर्स जैसे अपस्ट्रीम सेग्मेंट्स में। प्रमुख घटकों के लिये चीनी आयात पर भारी निर्भरता आपूर्ति शृंखला के लिये जोखिम उत्पन्न करती है और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को कमज़ोर करती है।चीन भारत का सोलर सेल एंड मॉड्यूल का शीर्ष आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है, जो 3.89 बिलियन डॉलर (62.6%) का आयात करता है। चीनी आयात पर निर्भरता कम करने के लिये भारत ने सोलर मॉड्यूल पर 40% सीमा शुल्क और सोलर सेल पर 25% शुल्क लगाया, लेकिन मूल्य शृंखला में पूर्ण आत्मनिर्भरता अभी भी प्राप्त नहीं हुई है।
हाइब्रिड प्रणालियों में तकनीकी अंतराल और मानकों का अभाव
रूफ टॉप के साथ बैटरी भंडारण के एकीकरण के लिये कुशल हाइब्रिड इनवर्टर और सिस्टम संचार की आवश्यकता होती है, जो अभी तक खंडित बना हुआ है। हाइब्रिड इन्वर्टर के लिये एक समान BIS मानकों के अभाव के कारण बाज़ार में असंगति और प्रदर्शन संबंधी अकुशलताएँ उत्पन्न हुई हैं, विशेष रूप से उच्च क्षमता वाली प्रणालियों में। अधिकतर इनवर्टर की कार्यशीलता 60V से नीचे है, जिससे थर्मल नुकसान होता है और 3kW से कम क्षमता वाले सिस्टम में कम दक्षता होती है। हाइब्रिड इनवर्टर के वोल्टेज या संचार प्रोटोकॉल के लिये अभी तक कोई एकीकृत मानक मौजूद नहीं है।
भूमि और ट्रांसमिशन अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: उपयोगिता-स्तरीय सौर परियोजनाओं के लिये विशाल भूमि और मज़बूत ट्रांसमिशन नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जिनमें से दोनों में ही बाधाएँ हैं। भूमि अधिग्रहण में विलंब और अंतिम बिंदु तक ट्रांसमिशन अभिगम की कमी से परियोजना की शुरुआत में बाधा आती है तथा लागत बढ़ जाती है। कुछ राज्यों में सौर पार्कों का उपयोग निकासी संबंधी बाधाओं के कारण कम हो रहा है और इसके कारण, उपयोगिता-स्तरीय सौर परियोजनाएँ अपनी निर्धारित समापन तिथि से औसतन 17 महीने के विलंब का सामना कर रही हैं तथा चरम मामलों में 34 महीने तक की देरी हो रही है। अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन प्रणाली (ISTS) शुल्क जून 2025 तक माफ कर दिये गए हैं, लेकिन कई सौर-समृद्ध राज्यों में बुनियादी अवसंरचना की कमी बनी हुई है।
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पारिस्थितिकी व्यवधान और जैव-विविधता पर प्रभाव
बड़े पैमाने पर सोलर पैनल स्थापना, विशेष रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क पारिस्थितिकी प्रणालियों में, प्रायः आवास विखंडन और जैव-विविधता ह्रास का कारण बनती है। जबकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि सोलर फार्मों का प्रबंधन परागण आवासों को बढ़ाने और यहाँ तक कि मधुमक्खियों की संख्या को बढ़ाने के लिये भी किया जा सकता है।लेकिन सोलर पार्क के लिये भूमि को साफ करने से स्थानीय वनस्पति और जीव-जंतु नष्ट हो जाते हैं, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित होता है।
कृषि और जैव-विविधता के लिये मधुमक्खियों जैसे महत्त्वपूर्ण परागणकर्त्ता, विशेष रूप से हीट आइलैंड एवं वनस्पति के नुकसान से प्रभावित होते हैं।इससे भारत की 75% खाद्य फसलें प्रभावित होती हैं जो कीट परागण पर निर्भर होती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता खतरे में पड़ जाती है।भारत अपने सौर ऊर्जा क्षेत्रक को सुदृढ़ करने के लिये कौन-से रणनीतिक उपाय लागू कर सकता है?
टाइम-ऑफ-डे (ToD) टैरिफ और ग्रिड-लिंक्ड स्टोरेज प्रोत्साहन
भारत को स्टोरेज-लिंक्ड सोलर पैनल अंगीकरण को प्रोत्साहित करने और सौर अधिशेष की अवधि में खपत को स्थानांतरित करने के लिये टाइम-ऑफ-डे टैरिफ के माध्यम से गतिशील मूल्य निर्धारण को अपनाना चाहिये। ग्रिड-इंटरैक्टिव बैटरी प्रणालियों के लिये प्रदर्शन-संबंधी प्रोत्साहनों के साथ इसे जोड़ने से शाम के समय दबाव कम हो सकता है। इससे ग्रिड संतुलन को भी सहायता मिलेगी और रुकावट की चुनौतियों को भी कम किया जा सकेगा।
हाइब्रिड सोलर सिस्टम और अनिवार्य स्मार्ट इनवर्टर: हाइब्रिड इनवर्टर, बैटरी वोल्टेज रेंज और संचार प्रोटोकॉल के लिये राष्ट्रीय BIS मानकों की स्थापना अंतर-संचालन एवं दक्षता के लिये आवश्यक है। इसके साथ ही, सभी नए रूफटॉप सोलर सिस्टम में स्मार्ट इनवर्टर को अनिवार्य करने से ग्रिड दृश्यता में वृद्धि हो सकती है, वास्तविक काल में प्रतिक्रियाशील बिजली नियंत्रण संभव हो सकता है तथा लास्ट-माइल ग्रिड प्रबंधन को सुदृढ़ किया जा सकता है।
PM-KUSUM को रूफटॉप सोलर
PM-KUSUM को PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के साथ एकीकृत करने से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी भारत में विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा अभिगम को बढ़ाया जा सकता है। कृषि सौर पंपों के सौरीकरण को घरेलू RTS अवसंरचना के साथ संयोजित करके, राज्य आत्मनिर्भर माइक्रोग्रिडों के साथ सोलर विलेज बना सकते हैं, जिससे ऊर्जा सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका दोनों में वृद्धि होगी। RTS अनुप्रयोगों, सब्सिडी, बैंक ऋण एकीकरण, विक्रेता मान्यता और O&M सेवाओं के लिये वन-स्टॉप डिजिटल पोर्टल अंगीकरण को सुव्यवस्थित करेगा।
UPI, आधार-आधारित सत्यापन और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से मानकीकृत ऋण योजनाओं को एकीकृत करने से विशेष रूप से अर्द्ध-शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मदद मिल सकती है, जहाँ प्रगति धीमी है। मॉड्यूल से परे घरेलू विनिर्माण को सुदृढ़ करना: यद्यपि PLI योजनाओं ने मॉड्यूल उत्पादन को बढ़ावा दिया है, पॉलीसिलिकॉन, इन्गॉट्स और वेफर्स जैसे अपस्ट्रीम सेगमेंट को पूर्ण सौर आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये।