Medha Tadpatrikar and Shirish Phadtare : वेस्ट प्लास्टिक से बनाते हैं इंडस्ट्रियल ऑयल
Medha Tadpatrikar and Shirish Phadtare – 2009 में पुणे के शिरीष फडतारे ने प्लास्टिक के बारे में सोचा, कि क्यों न प्लास्टिक को पिघलाकर कुछ किया जाए। फिर हमने ऐसा फॉर्मूला ईजाद किया कि आज वेस्ट प्लास्टिक यानी कूड़े से हर रोज 700 लीटर डीजल जैसा ऑयल बनाकर बेच रहे हैं। यह ऑयल इंडस्ट्रियल मशीनों के अलावा जनरेटर और बोट को ऑपरेट करने में काम आती है। इस इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस है। 55 साल की मेधा ताडपत्रीकर शिरीष फडतारे की बिजनेस पार्टनर हैं। दोनों कॉलेज के दोस्त हैं। ‘रुद्रा ब्लू प्लेनेट एनवायर्नमेंट सॉल्यूशन’ नाम से कंपनी चला रहे हैं।
20 लोग काम कर करते हैं यूनिट में
शिरीष की पुणे यूनिट में इस वक्त 20 लोग काम कर रहे हैं। कोई वेस्ट प्लास्टिक को साफ कर रहा है, तो कोई इसे प्रोसेस कर रहा। वो वेस्ट प्लास्टिक के ढेर को दिखाते हुए कहते हैं, ‘जिसे लोग इधर-उधर फेंक देते हैं, कूड़े का पहाड़ खड़ा करते हैं, उससे हम ऑयल तैयार करते हैं। डिमांड इतनी कि सप्लाई कर पाना मुश्किल।’ शिरीष उन दिनों के बारे में बताते हैं जब वो इस पर एक्सपेरिमेंट कर रहे थे। कहते हैं, ‘हम दोनों साइंस बैकग्राउंड से नहीं आते हैं। इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है। मैं अकाउंटेंट था और मेधा ब्रांडिंग के प्रोफेशन से जुड़ी थी।’ शिरीष कहते हैं, ‘सबसे पहले तो अपने मैकेनिकल और केमिकल बैकग्राउंड के दोस्तों से मिलना शुरू किया था।
300 किलोग्राम का एक और प्लांट लगाया
हम और शिरीष उस जगह पर पहुंचते हैं, जहां बॉयलर के जरिए वेस्ट प्लास्टिक से ऑयल निकाला जा रहा है। कहते हैं, ‘हम दोनों ने एक प्लांट लगाना तय किया। 10 लाख रुपए की लागत से 35 किलोग्राम का एक प्लांट लगाया। लगातार तीन साल तक एक्सपेरिमेंट करने के बाद वेस्ट से अच्छी क्वालिटी का ऑयल निकला। यह डीजल जैसा था। जिसके बाद 20 लाख रुपए की लागत से 300 किलोग्राम का एक और प्लांट लगाया।’ शिरीष जिस वेस्ट से बने ऑयल को हमें दिखा रहे हैं, उसमें और डीजल में अंतर कर पाना मुश्किल है। वो कहते हैं, ‘आपको ही नहीं, इंडस्ट्री के लोगों को भी यह डीजल जैसा ही दिखाई देता है। हो भी क्यों न, काम भी उसी तरह से करता है और सस्ता है, ये एक्स्ट्रा बेनिफिट। ‘ शिरीष कहते हैं, ‘हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था। घर चलाने के लिए हम दोनों पहले से बिजनेस कर रहे थे। जब हमने वेस्ट से ऑयल बनाने का प्रोसेस शुरू किया तो लोग पागल समझते थे। कहते थे, ये पागल कूड़ा से ऑयल बनाएगा।
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बड़ी मात्रा में इकठ्ठा करना चुनौती भरा
वो कहते हैं, ‘जैसे क्रूड ऑयल से पेट्रोल, गैसोलिन, डीजल, केरोसिन जैसे प्रोडक्ट रिफाइन कर बनाए जाते हैं। उसी तरह से वेस्ट प्लास्टिक को पिघलाकर ऑयल बनाया जाता है। प्लास्टिक पूरी तरह से साफ होना चाहिए। कुछ कंपनियां इस ऑयल को खरीदकर फिर से प्लास्टिक भी बनाती हैं। हम ऑयल बनाकर इंडस्ट्री को सप्लाई करते हैं। इंडस्ट्री के लोग मशीन के लिए डीजल के बदले वेस्ट से बने ऑयल को खरीदना पसंद कर रहे हैं।’ लेकिन इस काम में शिरीष के सामने सबसे बड़ा चैलेंज भी है। वो कहते हैं, ‘कहने को तो वेस्ट प्लास्टिक है, लेकिन इसे बड़ी मात्रा में इकठ्ठा करना चुनौती भरा है।’ शिरीष बताते हैं कि पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (PMC) कई बार वेस्ट प्लास्टिक की सप्लाई करने की बात कह चुकी है, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया। वो ट्रस्ट बनाकर पुणे की सोसाइटी से अपने प्लास्टिक वॉरियर्स के जरिए वेस्ट को इकठ्ठा करवा रहे हैं।
30 सड़कों का निर्माण
शिरीष कहते हैं, ‘यदि सरकार की तरफ से मदद मिले तो हम और अधिक ऑयल का प्रोडक्शन कर सकते हैं। मार्केट में 25,000 लीटर ऑयल की रोजाना डिमांड है, और इसके लिए हमें हर दिन 50 टन वेस्ट प्लास्टिक की जरूरत है।’ वो कुछ आंकड़े हमारे सामने रखते हैं। बताते हैं, ‘पुणे में हर रोज 2,000 टन कूड़ा निकलता है। जिसमें 160 टन प्लास्टिक होता है। इसमें रिसाइकिल करने लायक 80 टन प्लास्टिक होता है। अब शिरीष की कंपनी प्लास्टिक से ऑयल बनाने वाली मशीन की भी मैन्युफैक्चरिंग कर रही है। नोएडा के अलावा अन्य शहरों में भी प्लांट लगाने का काम चल रहा है। शिरीष कहते हैं, प्लास्टिक को रिसाइकिल करने के बाद निकले वेस्ट से सड़क भी बनती है। अभी तक पुणे की 30 सड़कों का निर्माण कर चुका हूं।
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