Humanoid Robot Teacher: 99.99% सवालों का सही और सटीक जवाब देती है
Humanoid Robot Teacher: यूरोप से लेकर अमेरिका तक 2 लाख से ज्यादा ऐसे ह्यूमनाइड रोबोट टीचर मौजूद हैं जो छोटे बच्चों के स्कूलों से लेकर यूनिवर्सिटीज तक में पढ़ा रहे हैं। हालांकि मौलिक रूप से ये रोबोटिक टीचर इस कदर आकर्षित करने वाले नहीं हैं कि हर कोई उनके विकल्प के बारे में सोचे लेकिन यह उस देश में जहां 90 फीसदी टीचर पढ़ाने में बहुत अच्छे और इनोवेटिव न माने जाते हों, जहां 80 फीसदी से ज्यादा सरकारी टीचर काम से जी चुराते हों और बड़े पैमाने पर अपने पढ़े जाने वाले विषयों में पर्याप्त समझ व जानकारी न रखने वाले टीचर आइरिस जैसी कंपलीट टीचर से भय तो खायेंगे ही क्योंकि आइरिस भले रोबोट टीचर हो लेकिन अब तक के करीब सौ दिनों से ज्यादा के अनुभव से साफ है कि उसके पास बच्चों के 99.99 फीसदी सवालों का सही और सटीक जवाब है।
जरा भी वक्त जाया नहीं करती
आइरिस सही समय पर पढ़ाने के लिए कक्षा में प्रवेश करती है और सही समय पर अपना पाठ खत्म कर दूसरी क्लास की तरफ बढ़ जाती है। फालतू की बातें, किसी से ईर्ष्या नहीं, किसी को विशेष और किसी को गैर विशेष समझने की कोई आदत नहीं। सबसे बड़ी बात यह कि आइरिस जरा भी वक्त जाया नहीं करती। भला ऐसी टीचर किसे पसंद नहीं होगी। पिछले करीब एक दशक से पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर जो नैतिक और सामाजिक बहस छिड़ी हुई है, क्या आइरिस ने उस बहस को और नजदीक से हवा दे दी है? लगता तो ऐसा ही है।
विरोध में लाखों पोस्ट का तूफान
आइरिस के अपने काम पर नियुक्त होने के एक दिन बाद ही सोशल मीडिया में ऐसे ह्यूमनाइड रोबोट टीचरों के विरोध में लाखों पोस्ट का तूफान आ गया। इससे यह पता चलता है कि पहले से ही बेरोजगारी के चक्रव्यूह में फंसे देश में एआई कितना बड़ा संकट है। हालांकि पूरी तरह से सभी लोग उसका विरोध भी नहीं कर रहे। एक बड़ी संख्या है जो कि जाहिर है अध्यापकों की बिरादरी से नहीं आती, वे आइरिस के पक्ष में हैं। एक नजरिये से देखें तो यह स्कूल मैनेजमेंट के लिए भी अनुकूल है क्योंकि महज 20 से 21 लाख में बनने वाली और करीब 500 से 1000 रुपये के बीच की मेंटेनेस का खर्च कराने वाली यह अध्यापिका स्कूल मैनेजमेंट के लिए तो फायदे का सौदा है।
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स्कूल मैनेजमेंट के लिए फायदे का सौदा
आमतौर पर प्राइवेट या मान्यता प्राप्त स्कूलों में टीचर्स को 50 से 60 हजार रुपये की मासिक सैलरी मिलती है और करीब करीब हर विषय के टीचर रखने पड़ते हैं। इस तरह देखें तो एक टीचर सालाना कम से कम 6 से 7 लाख रुपये का पड़ता है और एक ह्यूमनाइड रोबोट टीचर अभी एकमुश्त करीब 21 लाख का और आने वाले दिनों में 3 से 4 लाख रुपये का पड़ेगा और कम से कम 5 साल तक वह कम से कम मेंटेनेस का खर्च कराये अपनी सेवाएं भी देगा। इसलिए एक तरफ जहां ये रोबोट टीचर स्कूल मैनेजमेंट के लिए फायदे का सौदा हैं वहीं छात्रों और अभिभावकों के लिए भी ये स्वीकार्य हैं क्योंकि एक बार बड़े पैमाने पर रोबोट टीचर आ जाएं तो जहां शिक्षा के बजट में भारी कटौती संभव है वहीं करीब-करीब सभी विषयों की भरपूर जानकारी रखने वाले ये टीचर छात्रों के लिए भी ज्यादा मुफीद साबित होंगे क्योंकि भारत में ज्यादातर टीचर टीचिंग क्षमता में परिपक्व नहीं हैं।
क्या इंसान को अपना गुलाम बना लेगी AI
असली सवाल उस नैतिकता और भयावहता की उस आशंका का है जो कई सालों पहले से हमें आगाह करती रही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक दिन इंसान को अपना गुलाम बना लेगी? एक वक्त आयेगा जब सोचने वाली मशीनें इंसान को हुक्म देंगी और इंसानों को उनके हुक्म को पूरा करना पड़ेगा। हालांकि गहराई से सोचें तो इसमें सच्चाई कम, डरावने अनुमानों का अतिरेक ज्यादा है। फिर भी कुदरत पर हमेशा शासन करने वाला इंसान किसी भी तरह की चुनौती से परहेज तो करता ही है। ऐसे में देशभर के करोड़ों टीचर अगर अभी से आइरिस का विरोध कर रहे हैं तो यह स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया है। वैसे यह सच्चाई भी बहुत साफ है कि जहां बड़ी तादाद में लोग बेरोजगार हों वहां इस तरह की कार्यशैली की तरफ जाना अलोकप्रियता का दामन थामना होगा लेकिन विज्ञान का इतिहास इस बात का भी साक्षी है कि इंसान चाहकर भी आगे बढ़ने के सफर को रोक नहीं सकता।
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