Indian Lovers Party: सैंकड़ों प्रेम विवाह आयोजित करा चुकी है आईएलपी
देश में एक पार्टी ऐसी भी है, जो महिलाओं को अपना साथी चुनने का अधिकार के लिये लड़ती है। यह पार्टी है- इंडियन लवर्स पार्टी (आईएलपी) जिसके अध्यक्ष कुमार श्रीश्री चेन्नै दक्षिण लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे, इस विशिष्ट नारे के साथ कि उनकी पार्टी प्रेमियों की रक्षा करेगी। आईएलपी और उसके लव एजेंडा को सियासी लतीफा समझकर व हंसकर अनदेखा किया जा सकता है, लेकिन क्या ऐसा करना ठीक होगा? शायद नहीं। क्यों? उत्तर से पहले आईएलपी के बारे में संक्षेप में बताना आवश्यक प्रतीत होता है। इस साल के वैलेंटाइन डे को आईएलपी के लगभग 150 सदस्य (जो खुद को लवर्स कहते हैं) छोटे छोटे समूह बनाकर चेन्नै के तीनों समुद्री तटों (मरीना बीच, बसंत नगर बीच व गोल्डन बीच) पर घूम रहे थे। उनके हाथों में अपनी पार्टी का- पिंक, ऑरेंज व ग्रीन तिरंगा झंडा था, जिस पर आईएलपी का चुनाव चिन्ह ‘दिल के भीतर ताजमहल’ भी इन्हीं रंगों में बना हुआ था, जिसमें से एक तीर पार हो रहा था। कार्यकर्ताओं का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना था कि कोई प्रेमी जोड़ों को परेशान न करे।
‘प्रेम की राजनीति’ की वकालत करने गठन
अब रिवाइंड करते हुए 2008 के वैलेंटाइन डे का मंजर देखते हैं- पूर्व मेकअप आर्टिस्ट व आईएलपी के संस्थापक अध्यक्ष कुमार श्रीश्री मरीना बीच पर थे कि उन्होंने देखा कट्टरपंथी गुटों के सदस्य विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, ग्रीटिंग कार्डस् फाड़ रहे हैं और बीच पर बैठे प्रेमी जोड़ों को शर्मिंदा करने के लिए गांधीजी की प्रतिमा के सामने कुत्तों की ‘शादी’ आयोजित कर रहे हैं। स्थिति बद से बदतर उस समय हो गई जब पुलिस आयी और प्रेम के सार्वजनिक इजहार के आरोप में जोड़ों को ही परेशान करने लगी। इसकी प्रतिक्रिया में उसी वर्ष कुमार ने ‘प्रेम की राजनीति’ की वकालत करने के लिए आईएलपी का गठन किया और मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की यह आग्रह करते हुए कि राजनीतिक व धार्मिक गुटों पर रोक लगायी जाये कि वह प्रेमी जोड़ों को परेशान न करें। हालांकि यह केस अब भी विचाराधीन है, लेकिन 2008 से आईएलपी के लवर्स वैलेंटाइन डे पर विभिन्न समुद्री तटों पर चॉकलेट बांटते व अपनी पार्टी का प्रचार करते हुए घूमते हैं।
अब आईएलपी ने चुनावी मैदान में भी उतरना शुरू कर दिया था, इस नारे के साथ- ‘दुनिया के प्रेमियों एकजुट हो जाओ’। आईएलपी के घोषणापत्र में अन्य वायदों के साथ ही शामिल था- सभी प्रेमियों को प्रेम के प्रतीक ताजमहल की मुफ्त सैर, जो जोड़े अपने परिवार या समुदाय की इच्छा के विरुद्ध विवाह करना चाहते हैं, उनकी मदद करना। जो भी प्रेम करता है वह आईएलपी का ‘सदस्य’ है। कुमार का कहना है, “समाज की जितनी भी कुरीतियां हैं, जैसे दहेज प्रथा, जाति प्रथा, साम्प्रदायिकता आदि, उन पर विराम केवल प्रेम विवाहों की मदद से ही लगाया जा सकता है।”
आईएलपी अभी तक सैंकड़ों प्रेम विवाह आयोजित करा चुकी है। आईएलपी की प्रेम विचारधारा की पृष्ठभूमि में इस बार पीएमके ने जो अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया था उसमें लोगों की दिलचस्पी उत्पन्न हुई थी। पीएमके चाहती थी कि जो लड़कियां 21-वर्ष की आयु से पहले विवाह करना चाहती हैं, उनके लिए पेरेंट्स से मंजूरी लेना अनिवार्य किया जाये। कानूनन लड़की के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 साल है। पीएमके अंतर्जातीय विवाह के भी विरोध में है, इसके लिए वह अनेक अभियान चला चुकी है और वह अपनी इस मांग को ‘मेडिकल आधार’ पर उचित ठहराने का प्रयास करती है (जोकि बिल्कुल गले नहीं उतरता है)।
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प्रेम में पड़ना डरावने सपने जैसा
एआई के युग में भी ऐसे भारतीयों की कमी नहीं है, जिनके लिए लड़कियों का प्रेम में पड़ना डरावने सपने जैसा है। इसके चलते ही ‘ऑनर किलिंग’ की खबरें पढ़ने को मिलती हैं। हालांकि बाल विवाह (जोकि कानूनन दंडनीय अपराध है) के अनेक कारण हैं, लेकिन इसके अभी तक जारी रहने की एक वजह यह भी है कि बालिग होने पर लड़की अपनी मर्जी से शादी करके खानदान की नाक न कटा दे। 17 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 285 जिलों का जो डाटा सामने आया है, उससे मालूम होता है कि 2022-23 में सिविल सोसाइटी संगठनों ने कानूनी हस्तक्षेप के माध्यम से जो 9,551 बाल विवाह रोके, उनमें से एक चौथाई ऐसे थे, जिनमें 10 से 14 वर्ष की आयु की बालिकाओं का ब्याह कराने का प्रयास था। जीवनसाथी के चयन में लड़की की अपनी कोई मर्जी नहीं है। यह नजरिया केवल तमिलनाडु के राजनीतिक दल पीएमके का ही नहीं है। इसकी गूंज हर सियासी क्षेत्र में है। यह लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों का एजेंडा था, यह अलग बात है कि पीएमके की तरह उनमें इसे अपने चुनावी घोषणापत्रों में शामिल करने का साहस नहीं था। लेकिन सत्तारूढ़ होने पर उनकी नीतियों से यह जाहिर हो जाता है।
महिलाएं देवी नहीं बनाना चाहतीं
उत्तराखंड के हाल के समान नागरिक संहिता के कानून को ही देखें, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप को भी शामिल कर लिया गया है- लिव-इन संबंध को अगर स्थानीय पुलिस व रजिस्ट्रार के समक्ष पंजीकृत नहीं कराया गया तो दोनों कैद व जुर्माना का प्रावधान है। अगर कोई पार्टी 21-वर्ष से कम है, तो रजिस्ट्रेशन स्टेटमेंट पेरेंट्स को भी सौंपनी होगी। उत्तराखंड विधानसभा के स्पीकर ने इसे यह कहकर उचित ठहराया कि ‘हम लड़की के हितों को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं’। एक विचार जो लिंग समता लाने से शुरू हुआ था, उसका अंत सामाजिक पूर्वाग्रहों को ही मजबूत करने पर हुआ। राजनीति को केवल प्रेम से ही परेशानी नहीं है। नियमित पब्लिक परफॉरमेंस भी उसे आंखों में कांटे की तरह चुभ सकती है।
इस संदर्भ में कुछ प्रतिक्रियाएं तो यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हमारी सांस्कृतिक बुनियादें भूकंप के झटकों की चपेट में तो नहीं आ गई हैं। पश्चिम बंगाल की वाम सरकार में मंत्री रहे जतिन चक्रबर्ती ने उषा उत्थुप के कार्यक्रमों को ‘सांस्कृतिक पतन’ कहा था और उनका विरोध करने के लिए अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ शामिल भी हुए थे। अगर आईडिया ऑफ इंडिया में एक बदलाव किया जाये तो वह है, हमारा आईडिया ऑफ वीमेन। महिलाएं देवी नहीं बनाना चाहतीं, वह आजादी चाहती हैं- चुनने की आजादी। इंडियन लवर्स पार्टी की यही मांग है और उचित मांग है।
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