World Heritage: हमारी पहचान का हिस्सा और कमाई का जरिया
World Heritage: भारत में विश्व धरोहरों का सम्मान इसलिए भी ज्यादा जरूरी है कि लंबे समय तक भारत पहले विदेशी आक्रांताओं और फिर साम्राज्यवादी लूट-खसोट का केंद्र रहा है। इसलिए पिछले लगभग 1000 सालों में भारत की सांस्कृतिक विरासत न सिर्फ बड़े पैमाने पर छिन्न-भिन्न हुई बल्कि इन विदेशी लुटेरों और साम्राज्यवादी षड्यंत्रकारियों ने लोगों के दिलोदिमाग में ऐसी हीनता बोध भी भर दिया कि आम हिंदुस्तानियों को अपने इतिहास, संस्कृति और परंपरा में कोई ऐसी महत्वपूर्ण चीज ही नजर नहीं आती थी जिसे सांस्कृतिक धरोहर मानकर उसके प्रति गौरव बोध का एहसास हो। भारत में आज 42 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें 34 सांस्कृतिक हैं और 7 प्राकृतिक, एक कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान और मिश्रित किस्म की धरोहर है। साल 1993 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में अजंता की गुफा को पहली बार विश्व विरासत घोषित किया गया था और इसके बाद आगरा का लालकिला और ताजमहल को यह श्रेणी हासिल हुई थी।
देश की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासतें
भारत की जिन सांस्कृतिक विरासतों को महत्वपूर्ण माना जाता है उनमें अजंता की गुफाएं, सांची के बौद्ध स्तूप, चंपानेर और पावागढ़ के पुरातत्व उद्यान, मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन, पुराने गोवा के चर्च, एलिफेंटा और एलोरा की गुफाएं, आगरा और फतेहपुर सीकरी की मुगलकालीन स्मारकें। तमिलनाडु के चोल मंदिर, कर्नाटक के हंपी स्मारक और कर्नाटक के ही पद्दकल स्मारक, दिल्ली में हुमायूं का मकबरा, असम में कांचीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य, खजुराहों के स्मारक और मंदिर, भारतीय पर्वतीय रेल, नंदा देवी राष्ट्रीय अभ्यारण्य, फूलों की घाटी, कोणार्क का सूर्य मंदिर सहित दर्जनों दूसरी विरासतें हैं। ये भारत का ही नहीं दुनिया का भी मान बढ़ा रही हैं। दुनिया अब विश्व विरासत की न सिर्फ अच्छी तरह से कीमत समझ रही है बल्कि इस कीमत को सही तरीके से भुना भी रही है।
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विरासत की रक्षा करना जरूरी
यूनान हो या स्पेन, इटली हो या फ्रांस, आज अगर इन दोनों की कमाई का बहुत बड़ा जरिया इनकी विरासतों यानी इनके पुरखों की धरोहरों को देखने के लिए उमड़ते दुनियाभर के पर्यटक हैं तो ये देश भी अपनी इन विरासतों की देखरेख और उन्हें महत्वपूर्ण बनाये रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे क्योंकि इस 21वीं सदी में दुनिया बहुत अच्छी तरह से समझ गई है कि विरासत की रक्षा करना इसलिए जरूरी नहीं कि यह हमें हमारे गौरवपूर्ण अतीत से जोड़ती है बल्कि विरासत की रक्षा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह लगातार हमारी पहचान का हिस्सा है और कमाई का जरिया भी।
हालांकि दुनिया का कोई भी देश प्रत्यक्ष तौर पर इस बात को स्वीकारने से झिझकता है कि उसकी विरासत उसकी आर्थिक कमाई का बड़ा जरिया है। कहने के लिए सभी देश अपनी विरासतों को, अपने राष्ट्रीय गौरव को दुनिया के लिए सांस्कृतिक मूल्यों के रूप में प्रस्तुत करते हैं लेकिन हम सब समझते हैं कि ये गौरव और अच्छी कमाई का जरिया न हों तो इनकी परवाह कोई न करे। आज की तारीख में हमारी धरोहरें विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के बीच हमारे संबंधों को भी तय करती हैं। आज हमें दुनिया में जो सांस्कृतिक महत्ता मिलती है उसमें भी हमारे इतिहास और हमारी सांस्कृतिक विरासत का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए विरासत की रक्षा करना हर देश के लिए आज उसकी पहली प्राथमिकता है।
मानव को सतत रूप से प्रेरित करती हैं
सबसे पहले साल 1983 में पहली बार 18 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भविष्य की पीढ़ियों को अपने पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहरों से प्रेम और परिचय कराने के लिए 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस या वर्ल्ड हैरिटेज डे मनाया जाता है। विश्व की विरासतें मानव को सतत रूप से प्रेरित करती हैं। सिर्फ किसी समाज की विरासत उसी समाज को प्रेरित नहीं करती बल्कि विश्व के दूसरे समाजों को भी विरासत अच्छी तरह से प्रेरित करती है। विरासतें विभिन्न समुदायों के बीच रिश्तों को आत्मीय और सम्मानजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और मानवीय उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए महत्वपूर्ण आधार होती हैं। यही वजह है कि विश्व विरासत को दुनियाभर के मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। इसके चलते सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुरक्षा व संरक्षण स्वतः संभव होता है। दुनिया के किसी भी कोने में पूर्वजों ने जो भी महान कृतियां विरासत में छोड़ी हैं उन सबसे मानव की गरिमा, उसकी महत्ता और खास बात यह कि किसी वातावरण विशेष के साथ उसके एकबद्ध रहने की संकल्पना का पता चलता है।
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