Ocean Oxygen: 700 स्थानों की पहचान, जहां ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम
जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र में ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है। इसका पानी लगातार एसिडिक होता जा रहा है, जिस वजह से समुद्र की सतह पर तेजी से तापमान बढ़ रहा है। समुद्र में ऑक्सीजन की कमी के कारण महासागर के जीवों, मछुआरों और तटीय इलाकों में रहने वालों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है। कहा जा रहा है, इस वजह से मछली उत्पादन के केंद्र भी बदल जाएंगे। स्विजरलैंड के ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के रिसर्चर जोल वांग ने ये सब देखते हुए जापान और चीन को लेकर डर जाहिर किया है। उन्होंने कहा, जापान और चीन जैसे कई देशों के तटीय इलाकों में मछलियों की कमी होने लगेगी। बढ़ते तापमान की वजह से मछलियां समुद्र में स्थाई प्रवास करेंगी। इसका एक कारण इंसानी गतिविधियां भी हैं, जगह जगह पर जंगल का जलना, कूढ़े-कचरे के ढेर ने गर्मी को बढ़ावा दिया है। रिसर्चर जोल वांग आगे कहते हैं, अगर ऐसा ही रहा तो आने वाली स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा।
20 प्रतिशत हिस्से में समुद्र की हालत बहुत बेकार
धरती के 20 प्रतिशत हिस्से में समुद्र की हालत बहुत बेकार होती जा रही है। वहीं इससे पहले अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने भी ऑक्सीजन की कमी पर चेतावनी जारी की थी। उन्होंने कहा था, कि दुनियाभर में 700 स्थानों की पहचान की गई है, जहां ऑक्सीजन की मात्रा कम है। वहीं उससे पहले 1960 में ऐसे केवल 45 स्थान थे, जहां ऑक्सीजन की कमी है। फिर धीरे-धीरे बढ़कर ऐसे स्थानों की संख्या चार गुना हो गई है। वहीं रिसर्च के मुताबिक, अब ये 1960 के मुकाबले 6 गुना ज्यादा हो गया है। जहां पर ऑक्सीजन की मात्रा बिल्कुल नहीं है।
स्थाई समुद्री हीटवेव की ओर बढ़ रहा हिंद महासागर
समुद्री जीव गर्म तापमान, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्लास्टिक प्रदूषण का सामना कर रहे हैं। हिंद महासागर लगभग स्थाई समुद्री हीटवेव की ओर बढ़ रहा है। इससे हीटवेव के दिनों की संख्या सालाना 20 से 250 तक बढ़ सकती है। समंदर पीएच स्तर में कमी आने से पानी एसिडिक होता जा रहा है। इससे कैल्सीफिकेशन बढ़ रहा है। जिससे मूंगा (Coarl Reefs) और समुद्री जीवन को भारी नुकसान होगा। स्टडी में कहा गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को तेजी से कम करना होगा। कार्बन उत्सर्जन घटाना होगा। लचीला बुनियादी ढांचा, टिकाऊ समुद्री अभ्यास, उन्नत पूर्वानुमान, अनुकूल कृषि और हिंद महासागर क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रभावों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की तरफ ध्यान देना होगा। दुनिया के इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तनों से आसपास के देशों में बड़े स्तर पर सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है। पूरी दुनिया को देखें तो हिंद महासागर ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा शिकार बन रहा है। इसकी वजह से तटीय मौसम में बदलाव आएगा। चरम मौसमी आपदाएं आएंगी। आ भी रही हैं। अधिकतम गर्मी अरब सागर सहित उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में है। अगर इस सदी के अंत तक तापमान इसी तरह रहेगा तो इससे चक्रवाती तूफानों की संख्या पर असर पड़ेगा। 1950 के दशक से भारी वर्षा की घटनाएं और भयंकर चक्रवात पहले ही बढ़ चुके हैं।
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ग्लोबल वार्मिंग का समुद्र पर असर
– 14 सेमी बढ़ा है वैश्विक समुद्री जलस्तर वर्ष 1900 से 2000 तक
– 20 दिन होते थे पहले हिंद महासागर में अत्यधिक गर्मी के हर साल
– 220 से 250 दिन प्रति वर्ष हो जाएगी अत्यधिक गर्मी जल्द, हिंद महासागर स्थाई तौर पर समुद्री हीटवेव का शिकार बन जाएगा।
– 1.2 से 3.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है हिंद महासागर का औसत तापमान, यह तापमान एक सदी में बढ़ जाएगा।
– 40 देशों में आएंगी आसमानी आफतें बढ़ते तापमान की वजह से, भारी बारिश और चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ जाएगी।
– 01 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है आज वैश्विक औसत तापमान 19वीं सदी के अंत के तापमान से
बढ़ते तापमान का भारत पर असर
– 2050 तक भारत का धरातलीय तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ चुका होगा
– 3 डिग्री सेल्सियम तक बढ़ेगा तापमान उत्तरी और मध्य भारत में सर्दियों के दौरान
– 2 डिग्री तक बढ़ेगा तापमान दक्षिण भारत में, इससे हिमालय के शिखरों से बर्फ पिघलने और वहां से निकलने वाली नदियों में जल बहाव तेज हो जाएगा।
– 10 से 20 फीसद की कमी आ जाएगी वर्षा में बढ़ते तापमान के चलते मध्य भारत में
– 30 फीसद तक कमी आएगी वर्षा में बढ़ते तापमान के चलते उत्तरी पश्चिमी भारत में
– 7 से 10 फीसद बढ़ेगी वर्षा भारत में इक्कीसवीं सदी के अंत तक जाएंगी।
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