Til Farming: 15 जनवरी ते 15 फरवरी के बीच कीजिअ तील की बुवाई
तिल भारत की बहुत पुरानी तिलहनी फसल है, और तिल की पैदावार में भारत का दुनियाभर में प्रथम स्थान है। इस फसल की खेती ग्रीष्मकालीन खरीफ और आधी रबी फसलों में की जाती है। तिल की खेती के लिए जल निकासी की अच्छे से व्यवस्था होनी चाहिए। तिल के बीज बारीक होने के कारण बुवाई से पहले जमीन को अच्छी भुरभुरी बना लें।
इसके लिए कूड़ा-कचरा उठाकर खेत से बाहर निकाल लें और खेत को खड़ा-आड़ा तरीके से वखर मशीन या कल्टीवेटर से जुताई कर मिट्टी पलटकर जमीन भुरभुरी बनाना चाहिए। पठाला घुमाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए ताकि पानी रुकने की सम्भावना न रहें। भूमि तैयार करते समय 6 से 7 बैलगाड़ी सड़ी हुई गोबर को अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन बुवाई का समय: 15 जनवरी ते 15 फरवरी के बीच
योग्य किस्में : एकेटी- 101, पी.के.व्ही-एनटी- 11, वेस्टर्न – 11, दप्तरी-22, श्वेता
बुवाई विधि: 45 सें.मी. x 10 सें.मी. या 30 सें.मी. x 15 सें.मी.
एक बीज मात्रा : 1.25 किलो ते 1.50 किलो
बुवाई विधि
बोने से पहले बीजों में बराबर मात्रा में रेत मिला लें/ मिट्टी में सड़ी हुई गोबर मिलाने के बाद ही बुवाई करें। क्रमिक बुवाई पाभर या तिफन से 30 सें.मी. या 45 सें.मी. के अंतर पर करें। ध्यान रहे बुवाई की गहराई 2.5 सेंमी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
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बीजोपचार
एक किलो बीज को 3 ग्राम थायरम या 3 ग्राम बाव्हीस्टीन / 5 ग्राम ट्रायकाबुस्ट डि.एक्स. या इसके अतिरिक्त अॅझॅटोबॅक्टर 10 मिली + पीएसबी 10 मिली लगा सकते हैं।
खाली स्थान भराई व पतला करना (विरलीकरण)
बुवाई के 7-8 दिन बाद खाली स्थानों को भर दें और जहां ज्यादा घनत्व है वहां छटाई कर पतला कर देना चाहिए। बुवाई के 15 ते 20 दिन बाद दूसरी बार पोधों के घनत्व भागों को पतला करें, दो पौधों में 10 सें.मी. से 15 सें.मी. का अंतर रखें।
नोट :- विरलीकरण कर देने से पौधों को सही ढंग से नमी, तापमान व हवा प्राप्त होती रहेगी। इससे पौधे स्वस्थ रहेंगे और उपज में बढ़ोतरी हो जाएगी। खेत में पौधे घना रहने से धूप व हवा सिर्फ ऊपर ही लग पाती है।
खत व्यवस्थापन
बुवाई के साथ – डीपीए / 12:32:15 / 14:35:14 में से 1 बैग + रायझर- जी 10 किलो। + एन.पी.के. बुस्ट डि.एक्स 500 ग्राम
दूसरी मात्रा : एक महीने बाद 25 से 30 किलो यूरिया
सिंचाई
बुवाई के बाद तुरंत हल्का पानी देना चाहिए। इसके बाद जमीन की शक्ति के अनुसार 12 से 15 दिन बाद सिंचाई करना चाहिए। अंकुर निकले के समय और बोंड भरते समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए। पानी जमीन पर जमा न हो इसका ध्यान रखना चाहिए। वाफसा स्थिति में पानी पानी देना चाहिए।
किट व रोग प्रबंधन
तिल फसल पर मुख्य रूप से फुदका, पत्ता लपेट सुंडी, फली छेदक कीट पाये जाते हैं।
रोग
मररोग, तना रोग व जड़ सड़न रोग, झुलसा रोग, फफूंदी/दहिया इत्यादी।
कीटों और रोगों को नियंत्रित करने निम्नलिखित छिड़काव
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छिड़काव प्रबंधन
पहला छिड़काव: (अंकुरण के 20 से 25 दिन बाद)
रिहांश – 20 मिली + टॉप अप – 40 मिली + पिक्सल – 30 ग्राम
दूसरा छिड़काव: (अंकुरण के 40 से 45 दिन बाद)
सरेंडर / पांडासुपर – 30 मिली + झेप – 15 मिली + प्रोपीको – 20 मिली।
तीसरा छिड़काव: (अंकुरण के 60 से 65 दिन बाद)
इमान – 10 ग्राम + भरारी – 7 मिली + सुखई 30 मिली + 13:00:45 – 100 ग्राम