Unified Pension Scheme – आम जनता को साधने के कोशिस में भाजपा
Unified Pension Scheme: लोकसभा चुनाव में आशानुरूप परिणाम नहीं मिलने और बैसाखी की सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब आम जनता से जुड़े सीधे कदम एक के बाद एक उठाती जा रही है। ओबीसी, एससी और एससीटी वर्ग के कोटे में कोटा को लेकर जेपीसी गठित कर जहां विपक्ष को भी इस मुद्दे में भागीदार बना लिया है, वहीं अब यूनिफाइड पेंशन स्कीम लाकर एक तरह से केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को तो खुश किया ही है, वहीं कांग्रेस के ओपीएस के मुद्दे को छीन लिया है। यही नहीं, यूपीएस की घोषणा के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तो कांग्रेस पर भ्रम फैलाने का आरोप यह कहकर लगा भी दिया कि हिमाचल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ओपीएस का मुद्दा बनाते हुए राज्य कर्मचारियों को सरकार बनने पर सुविधा देने की घोषणा की थी, लेकिन हिमाचल में सरकार बनने के बाद भी कांग्रेस अपने वादे को भूल गई। इधर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यूपीएस को भाजपा इस वर्ष अंत तक जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र व झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए संजीवनी मान रही है।
कर्मचारियों की बड़ी मांग को पूरा किया
यही वजह है कि मोदी सरकार ने इन चुनाव से पहले कर्मचारियों की बड़ी मांग को पूरा किया है बल्कि भाजपा शासित राज्यों में इस स्कीम को स्वीकार करने का रास्ता बना दिया है। खासकर महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे बड़े राज्यों में इसका असर देखने को मिल सकता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बड़ा मुद्दा बनाते हुए सरकार बनने पर तत्काल लागू करने की घोषणा की थी। हालांकि इस मुद्दे का चुनाव में कोई खास असर देखने को नहीं मिला। कांग्रेस को जहां कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ, वहीं भाजपा को यह मुद्दा सरकार बनाने से रोक नहीं सका। बावजूद भाजपा ने कर्मचारी संगठनों को विश्वास में लेते हुए बीच का रास्ता निकाला और पेंशन व महंगाई दोनों को आधार देते हुए अंतिम मूल वेतन की 50 प्रतिशत पेंशन स्कीम 2004 से लागू कर दी।
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18 माह से काम कर रही थी
पार्टी सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार इस योजना पर करीब 18 माह से काम कर रही थी। यह स्कीम लोकसभा चुनाव से पहले ही लाई जानी थी, लेकिन कर्मचारी संगठनों के साथ कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बनने के कारण योजना अटक गई। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि दरअसल भाजपा लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक लेते हुए अब एक बार फिर अपने मध्यमवर्गीय कोर वोट बैंक की ओर वापस पहुंच रही है। 90 प्रतिशत सरकार कर्मचारी इसी वर्ग से आते हैं। सरकारी कैडर, खासकर दिल्ली में फरवरी 2025 में चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले महाराष्ट्र और हरियाणा दो बड़े राज्यों के चुनाव हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और दोनों ही राज्यों में एंटीइनकमबेंसी का माहौल गहराया हुआ है। संभव है केंद्र की इस स्कीम पर राज्य सरकारें तुरंत अमल कर खासकर सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी को दूर करने का कारगर प्रयास करें।
संगठनों को भरोसे में लिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक के अपने कार्यकाल में पहली बार कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया। मोदी का यह कदम निश्चित ही कर्मचारी वर्ग की जरूरत को दिखाता है। यूपीएस घोषणा के तुरंत बाद संयुक्त सलाहकार समिति के पदाधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री ने यह मुलाकात की। यह संगठन देशभर के करीब 34 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को प्रतिनिधित्व करता है। संगठन के अध्यक्ष एम राघवैया ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि हमारी वर्षों पुरानी मांग पूरी हुई है। अब हम बैठकें करेंगे और इस फैसले को अपने सभी सदस्यों के साथ साझा करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि संगठन ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया जिसमें उनसे न्यूनतम वेतन को संशोधित कर 32,500रु करने का अनुरोध किया गया।
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