Public Sector Undertakings – 8,500 से अधिक कर्मचारी कर रहे हैं काम
Public Sector Undertakings: भारत को उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार मिशन मोड में काम करते हुए दिख रही है. इन प्रयासों का उद्देश्य उर्वरक की विदेशी निर्भरता को कम करना और घरेलू उत्पादन बढ़ाना है| इसी कड़ी में केंद्र सरकार देश में सरकारी स्वामित्व वाली उर्वरक कंपनियों (PSU) को बेचने की तैयारी में है. सरकार 8 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) को बेचने की तैयारी में हैं, जिसकी प्रक्रिया अगले वित्त वर्ष से शुरू की जा सकती है। खास बात यह है इनमें से 5 कंपनियां फायदा दे रही हैं। सिर्फ एक घाटे में है, तो 2 कंपनियां बंद हो चुकी हैं। इनमें से 5 कंपनियों में लगभग 8,500 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर फर्टिलाइजर्स की कंपनियों के नाम शामिल हैं।
सरकार को जल्दीबाजी से बचना चाहिए
विशेषज्ञों को इसे लेकर चिंता है। विशेषज्ञों का कहना है कि उर्वरक PSU यूनिट्स को बेचने के मामले में सरकार को जल्दीबाजी से बचना चाहिए। इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने से किसानों का नुकसान बढ़ सकता है। वह इस मामले में सरकार को पत्र लिखकर जल्दीबाजी ना करने की मांग करेंगे। अमूमन देश में 30 फीसदी उर्वरक का प्रोडक्शन इफको करता है, जबकि 70 फीसदी निजी कंपनियां करती हैं, लेकिन दो साल पहले इंटरनेशनल स्तर पर उर्वरक के दामों में बढ़ोतरी से ये तस्वीर उलट गई है। मसलन, दामों में बढ़ोतरी के बाद 70 फीसदी उर्वरक प्रोडक्शन इफको कर रहा है, जबकि 30 फीसदी प्रोडक्शन निजी कंपनियां कर रही हैं। अगर सरकार दामों पर नियंत्रण रखती हैं तो निजी कंपनियां नुकसान का हवाला देते हुए उत्पादन में कटौती करने लगती हैं। इन हालातों में किसानों को नुकसान हो सकता है। बेशक उत्पादन बढ़ाने के लिए ये तरीका हो सकता है, लेकिन किसानों को उर्वरक संकट का सामना ना करने पड़े ये सुनिश्चित करना होगा।
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कृभको ने योजना को किसान विरोधी बताया
देश की अन्य सहकारी एजेंसी कृभको ने भी उर्वरक PSU बेचने की योजना को किसान विरोधी बताया है। कृभको के चैयरमैन सीपी यादव ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अगर PSU सरकारी नियंत्रण में रहेंगे तो बेहतर काम करेंगे। उन्होंने कहा कि जरूरत है कि उर्वरक PSU को बेचने की जगह उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाए। इनकी बिक्री की योजना किसानों के हित में नहीं है। किसानों की उर्वरक की आवश्यकता को PSU पूरी करती हैं। निजीकरण होगा तो बेहतर काम नहीं कर पाएंगे। 2022 में नीति आयोग ने आठ फर्टिलाइजर कंपनियों को स्ट्रैटजिक सेल के लिए चिह्नित किया था, लेकिन सरकार ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्हें बेचने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। आम चुनावों के चलते सरकार ने अपनी कंपनियों की बिक्री को योजना को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
97.64 करोड़ रुपये के घाटे में थी ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर
अब एक बार फिर कंपनियों की बिक्री की खबर आने लगी हैं। जिन कंपनियों के बिकने की चर्चा है उनमें से सिर्फ ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्प लिमिटेड ही एकमात्र ऐसी कंपनी है, जो घाटा दे रही है। इसकी वेबसाइट पर वित्त वर्ष 2021-2022 तक के वित्तीय प्रदर्शन के आंकड़ों में यह 97.64 करोड़ रुपये के घाटे में थी। हालांकि इसके पहले दो वित्तीय वर्ष में कंपनी अपना घाटा कुछ कम करने में सफल रही थी, जो 2019-20 और 2020-21 में क्रमश: 129.70 और 137.75 करोड़ था। पांच चालू सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में इसके अलावा अन्य 4 एफसीआई अरावली जिप्सम एंड मिनरल्स लिमिटेड, फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर, नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स मुनाफा दे रही हैं। फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर्स कॉरपोरेशन लिमिटेड कुछ वर्ष पहले घाटे के कारण बंद की जा चुकी हैं। हालांकि अब चर्चा है कि बंद पड़ी कुछ यूनिट को फिर से शुरू करके इन्हें बेचा जा सकता है।
राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स की स्थिति बेहतर
5 चालू सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम में राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स की स्थिति काफी बेहतर है। इसका 2019-20, 2020-21 और 2021-22 में शुद्ध लाभ सबसे बेहतरीन रहा था। कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक उक्त तीन वर्षों में कंपनी ने क्रमश: 208.15, 381.94 और 704.36 करोड़ का मुनाफा कमाया था। इसके अलावा फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर भी 2021-22 में शुद्ध लाभ के लिहाज से 353.28 करोड़ रुपये कमा चुकी थी। उस साल कंपनी का टर्नओवर 4,424.81 करोड़ रुपये का रहा था। फिर अरावली जिप्सम और नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड आती हैं, जिनका मुनाफा क्रमश: 2022-23 तक 6.75 करोड़ और 108.20 करोड़ रहा था। केंद्र सरकार अभी आयात पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता पर काम कर रही है। उसके बाद ही फर्टिलाइजर पीएसयू के विनिवेश पर काम किया जाएगा। सरकार की योजना इस साल के अंत तक यूरिया के आयात में 30 फीसदी कमी लाना है।
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सब्सिडी में भारी कटौती
सरकार ने फर्टिलाइजर्स पर दी जाने वाली सब्सिडी में भारी कटौती की है। हालांकि हिस्सेदारी बिक्री से सब्सिडी पर कोई असर नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि पुराने प्लांट को फिर से चालू करने और नए प्लांट स्थापित करने से घरेलू उत्पादन में 20 फीसदी तेजी आई है और आयात में 10 फीसदी गिरावट आई है। 2024 में सरकार ने 7.04 मीट्रिक टन यूरिया आयात किया, जो पिछले साल 7.57 मीट्रिक टन था। असल में केंद्र सरकार किसानों को सब्सिडी में उर्वरक उपलब्ध कराती है। जिसके तहत सब्सिडी में उर्वरक के कट्टे उपलब्ध कराए जाते हैं। पिछले कई सालों से उर्वरकों के दामों में बढ़ोतरी होने पर भी किसानों को पुराने दामों में उर्वरक उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके लिए केंद्र सरकार ने उर्वरक सब्सिडी बीते साल 2 लाख करोड़ से अधिक खर्च किए थे।
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