Project Cheetah – गुजरात में बन्नी घास के बनाए जा रहे मैदान
Project Cheetah: केन्या से चीतों के एक नए जत्थे लाने के लिए समझौता ज्ञापन प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे (समझौता ज्ञापन को) अंतिम रूप दे दिया है और अफ्रीकी देश से इस पर मंजूरी का इंतजार है। ‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस’ के महानिदेशक एसपी यादव ने बताया कि गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में बनाए जा रहे प्रजनन केंद्र के लिए भी चीते केन्या से लाए जाएंगे। यादव ने कहा कि बन्नी में लाने के लिए सर्दी का मौसम आदर्श समय है। 500 हेक्टेयर के बाड़े में विकसित किए जा रहे संरक्षण प्रजनन केंद्र में 16 चीते रखे जा सकते हैं।
समझौता ज्ञापन प्रक्रिया प्रगति पर
भारत में चीता को बसाने के लिए कार्य योजना में दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से पांच वर्षों के लिए प्रति वर्ष लगभग 12-14 चीते लाने की बात कही गई है। समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे अंतिम रूप दे दिया है और केन्या सरकार को इसे मंजूरी देनी है। इसके बाद दोनों सरकारें एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगी। यादव ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के साथ बातचीत जारी है। उसने पहले ही 12 से 16 अतिरिक्त चीतों को चिह्नित कर लिया है। उन्हें या तो इन चीतों को किसी दूसरे देश को देना होगा या उन्हें खत्म करना होगा। वर्तमान में यही स्थिति है। दक्षिण अफ्रीका में चीतों को अभयारण्यों में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि अगर आबादी क्षमता से ज्यादा हो जाती है, तो वे या तो जानवरों का निर्यात कर देते हैं या उन्हें मार देते हैं, क्योंकि वे अधिक आबादी को संभाल नहीं सकते।
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शिकार की आबादी पर निर्भर संख्या
कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में शिकार की कम संख्या के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा,‘जंगल में चीतों की संख्या पूरी तरह से शिकार की आबादी पर निर्भर करती है। अगर शिकार की आबादी उन्हें सहारा नहीं दे सकती तो हम और चीते नहीं छोड़ेंगे। यह हमारे नियंत्रण में है।’ यादव ने कहा कि कूनो के कर्मचारी जंगल में चीतों को ‘ट्रैंक्विलाइजर’ के जरिए रोगनिरोधी दवा देंगे। उन्होंने कहा कि अगर वे असफल होते हैं, तो ‘जानवरों को फिर से पकड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
संक्रमण रोकने रोग निरोधी दवाएं
संक्रमण को रोकने के लिए रोगनिरोधी दवाएं दी जाती हैं। ‘प्रोजेक्ट चीता’ की प्रगति पर यादव ने कहा कि जब दक्षिण अफ्रीका ने चीता की पूरी आबादी खो दी थी, तो उन्होंने नामीबिया से जानवरों को आयात किया था, और उन्हें व्यवहार्य आबादी स्थापित करने में 20 साल लग गए। उन्होंने कहा कि भारत में, हमने 2005 में राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में सभी बाघों को खो दिया था। वहां एक स्थिर आबादी को फिर से स्थापित करने में लगभग 15 साल लग गए।
एसपी यादव ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के साथ बातचीत जारी है। उसने पहले ही 12 से 16 अतिरिक्त चीतों को चिह्नित कर लिया है। उन्हें या तो इन चीतों को किसी दूसरे देश को देना होगा या उन्हें खत्म करना होगा। वर्तमान में यही स्थिति है। दक्षिण अफ्रीका में चीतों को अभयारण्यों में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि अगर आबादी क्षमता से ज्यादा हो जाती है, तो वे या तो जानवरों का निर्यात कर देते हैं या उन्हें मार देते हैं, क्योंकि वे अधिक आबादी को संभाल नहीं सकते।
( कूनों में चीतों की संख्या पर एक नजर )
– 20 चीतों को कूनो में लाया गया है अब तक
– 8 चीते लाए गए थे नामीबिया से सितंबर 2022 में
– 12 चीते लाए गए थे दक्षिण अफ्रीका से 2023 में
– 8 वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है भारत आने के बाद से, इनमें 3 मादा और 5 नर थे
17 शावकों का जन्म हुआ भारत में जिनमें से 12 जीवित हैं, जिससे कूनो में शावकों सहित चीतों की कुल संख्या 24 हो गई है
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