Anger Management: 90% लोग सिरदर्द और अनिद्रा की समस्या से पीड़ित
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर पांच में से तीन व्यक्तियों के नाक में गुस्सा धरा रहता है और इसका साइड इफेक्ट्स यह है कि बात बात पर गुस्सा होने वाले 90 फीसदी लोग सिरदर्द और अनिद्रा की समस्या से पीड़ित रहते हैं। बात बात पर गुस्सा होने वाले लोगों का हाजमा गड़बड़ रहता है और उन्हें दिल की बीमारी की आशंका ऐसे लोगों के मुकाबले 70 फीसदी ज्यादा होती है, जो बात बात पर गुस्सा नहीं होते या कहना चाहिए अपने गुस्से पर नियंत्रण रखते हैं। पूरी दुनिया में गुस्सैल लोग उन लोगों के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं जो गुस्सा नहीं होते या उस पर काबू रखते हैं। दुनिया में जितने भी लोग मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं, उनमें से 40 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्हें मानसिक बीमारियों का यह सिलसिला उनमें ज्यादा गुस्से के रूप में शुरु हुआ था। जो लोग बात बात पर गुस्सा होते हैं, उनके न सिर्फ घर के बाहर दोस्त नहीं होते बल्कि घर में भी उनसे लोग दोस्ताना व्यवहार नहीं रखते। ज्यादा गुस्सा रहने वाले 90 फीसदी लोग अपने निजी जीवन में हर तरह से असफल होते हैं, चाहे मामला आर्थिक कामयाबी का हो या रिश्तों में सहजता का। कुल मिलाकर बात बात पर गुस्सा होने वाले या जिनकी नाक पर गुस्सा धरा रहता है, जिंदगी के हर मोर्चे पर असफल रहते हैं।
सबसे बड़ी भूमिका हमारे स्वभाव की
बात बात पर हमारे गुस्सा होने में सबसे बड़ी भूमिका हमारे स्वभाव की होती है। इसलिए अगर किसी को अपने गुस्से पर नियंत्रण पाना है, तो उसे अपने स्वभाव पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन आनन फानन में स्वभाव के बदलने कभी कोशिश नहीं करनी चाहिए। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक अपने स्वभाव को मशीनी अंदाज में बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वर्षों में बना स्वभाव कुछ दिनों या महीनों में नहीं बदलता। वह जिस तरह धीरे धीरे बनाता है, वैसे ही धीरे धीरे बदलता है। कुल मिलाकर विशेषज्ञों की मानें तो किसी भी समस्या का समाधान चुटकी बजाकर निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह अव्यवहारिक है और असंभव भी। जब हम जल्दबाजी में किसी समस्या का समाधान ढूंढ़ने में असफल हो जाते हैं, तो हमें जबरदस्त गुस्सा आता है, क्योंकि हम हताश हो जाते हैं।
शॉर्टकट नहीं लांगकट अपनाएं
जब भी हमें गुस्सा आये तो हमें समाधान तलाशने का शॉर्टकट नहीं बल्कि लांगकट अपनाना चाहिए और दिल दिमाग को ईमानदारी से यह सोचने का मौका देना चाहिए कि आखिर हमारी समस्या का कारण क्या है? ऐसा करने से न सिर्फ हमें समस्या के वास्तविक समाधान सूझते हैं बल्कि हम ज्यादा व्यवहारिक भी रहते हैं, साथ ही हताश होने से भी बचे रहते हैं। उदाहरण के लिए हम पर काम का बोझ ज्यादा हो तो आनन फानन में काम खत्म कर लेने की मंशा कामयाब तो होती नहीं, उल्टे हमें किसी हद तक हताश कर देती है। इसलिए चाहे काम के बोझ से निपटने का मामला हो या कोई दूसरा, इससे पार पाने के लिए या इस पर काबू पाने के लिए खुद को थोड़ा ज्यादा समय देने की कोशिश करनी चाहिए।
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उस जगह से हट जाएं
परिवार के लोगों पर चीखना, किसी से चिढ़े होने पर उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर देना, चीजों को उठाकर पटक देना, ये ऐसी छोटी छोटी हरकतें हैं, जो चाहे भले एक बार ही की जाएं, लेकिन इनके जरिये लंबे समय तक हमारा मूल्यांकन या हमारी पहचान होती रहती है। दूसरे शब्दों में ये छोटी छोटी हरकतें हमें लंबे समय तक बार बार छोटा करती हैं। इसलिए इस तरह की हरकतों से बाज आना चाहिए। सवाल है इनसे बाज कैसे आएं? जब भी ऐसा कुछ करने का मन करे, दिल दिमाग में बेचौनी भर जाए तो इससे पार पाने का एक ही तरीका है, उस जगह से हट जाएं एक लंबी यानी लांग वाक करे, मन हल्का हो जायेगा और फिर ऐसी हरकतों को याद करके खुद पर ही शर्म आयेगी।
मन को समझाएं
किसी चीज पर अगर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा हो तो अपने मन को समझाएं कि हम आज नहीं इस पर कल गुस्सा करेंगे और बिना किसी छूट के जमकर गुस्सा होंगे। यकीन मानिये अगर आपने आज के बजाय कल पर गुस्सा होना टाल दिया तो फिर आप कभी गुस्सा नहीं करेंगे। क्योंकि गुस्सा भी एक तरह की भावना है, जिसका तेजी से उभार आता है और फिर उतनी ही तेजी से वापस लौट जाता है।
10 तक गिनतियां गिनें
जब भी दिल में भयानक रूप से गुस्सा आ रहा हो तो एक से लेकर 10 तक गिनतियां गिनें। इन्हें एक झटके में मन के अंदर नहीं बल्कि ऊंची आवाज में बोल बोलकर गिनना चाहिए। जब एक कहेंगे तो वह बहुत गुस्से में और बहुत तेज रफ्तार से एक निकलेगा। फिर धीरे धीरे 2,3,4 आदि बोलते समय रफ्तार कम होती जायेगी और गुस्सा भी दबे पांव निकलता रहेगा। मतलब यह कि 10 की गिनती तक पहुंचते पहुंचते गुस्सा अगर खत्म नहीं भी होगा तो भी आधा रह जायेगा। इस तरह उसमें काबू पा लेंगे।