Doping In Sport: बड़ा सवाल, कितने खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करते रहे होंगे ?
देश में खिलाड़ियों के बीच डोपिंग कितनी गहरी पैठ बना चुकी है, इस कड़वी हकीकत को वाडा की रिपोर्ट से समझा जा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में 152 भारतीय खिलाड़ियों को डोपिंग जांच में पॉजिटिव पाया गया। यह संख्या पूरी दुनिया के आरोपी खिलाड़ियों की अकेले 17 फीसदी है। शर्मसार करने वाली बात यह है कि डोपिंग के मामले में हमसे सिर्फ रूस और इटली आगे हैं। इससे भी अधिक चिंता इस पर किए जाने की जरूरत है कि 2018 में देश डोपिंग की सूची में पांचवें स्थान पर था और उससे पहले साल सातवें पायदान पर यानी भारतीय खिलाड़ियों के बीच डोपिंग की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं।
नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) की रिपोर्ट भी वाडा की रिपोर्ट को ही सही ठहराती नजर आती है। नाडा ने 2017 में जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि 2009 से 2016 तक 687 खिलाड़ियों को डोप टेस्ट में फेल होने पर प्रतिबंधित किया जा चुका है। नाडा के अस्तित्व में आने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कितने खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करते रहे होंगे, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
खेल भावना शर्मसार
हालिया मामले में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों ने तो खेल भावना को शर्मसार किया ही है, अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारतीय खिलाड़ी भी इस कलंकित कथा के किरदार बनने में पीछे नहीं हैं। राष्ट्रमंडल खेलों की कांस्य पदक विजेता जिम्नास्ट दीपा कर्माकर डोपिंग के चलते 21 माह का प्रतिबंध झेल रही हैं, तो वहीं एशियाई खेलों की सिल्वर मेडलिस्ट दुतीचंद पिछले महीने ही डोपिंग में फंस चुकी हैं।
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पिछले साल हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में फर्राटा धाविका एस। धनलक्ष्मी, ट्रिपल जंपर ऐश्वर्या बाबू, पैरा चक्का खिलाड़ी अवनीश कुमार और पैरा पॉवरलिफ्टर गीता समेत 5 खिलाड़ियों को प्रतिबंधित कर दिया गया था।
क्रिकेट भी अछूता नहीं
जेंटलमेंस गेम कहा जाने वाला क्रिकेट भी डोपिंग के दाग से अछूता नहीं है। साल 2008 में विश्व विजेता अंडर-19 टीम का हिस्सा रहे कोलकाता नाइट राइडर्स के तेज गेंदबाज प्रदीप सांगवान पर 2013 में 18 माह का प्रतिबंध लगाया गया तो वहीं 2017 में ऑलराउंडर यूसुफ पठान पर 5 माह का बैन लगा।
क्रिकेट के लिए डोपिंग के लिहाज से साल 2019 सबसे खराब रहा। तब विदर्भ के क्रिकेटर अक्षय दुलारकर, राजस्थान के दिव्य गजराज के साथ ही नामी क्रिकेटर पृथ्वी शॉ को प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था। जून 2021 में महिला क्रिकेटर अंशुला राव का मामला काफी चर्चित रहा। बीसीसीआई ने राव पर 4 साल के प्रतिबंध के साथ ही 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
मेक्सिको ओलंपिक में आया ता पहला मामला
आजाद भारत में डोपिंग का पहला मामला संभवतः 1968 में मेक्सिको ओलंपिक के ट्रायल के दौरान सामने आया था। 10 किलोमीटर दौड़ के लिए ट्रायल में कृपाल सिंह के बेहोश होने पर डॉक्टरों ने नशीले पदार्थ के सेवन की पुष्टि की थी। तब से लेकर अब तक खेलों में डोपिंग रोकने के लिए काफी कुछ किया जा चुका है। विश्व स्तर के खेलों में डोपिंग पर अंकुश के लिए नवंबर 1999 में वाडा की स्थापना की गई, तो इसके 6 साल बाद राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी के लिए नाडा अस्तित्व में आ गई।
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घरेलू स्तर पर जांच के लिए 2008 में दिल्ली में नेशनल डोप टेस्टिंग लैबोरेट्री (एनडीटीएल) भी बनाई गई। पिछले साल अगस्त में संसद ने द नेशनल एंटी डोपिंग बिल पास किया, ताकि डोपिंग पर खिलाड़ियों से लेकर संबंधित एजेंसियों को और अधिक जवाबदेह बनाया जा सके। भारत इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ के इंटरनेशनल कन्वेंशन अगेंस्ट डोपिंग इन स्पोर्ट्स में शिरकत कर डोपिंग रोकने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुका है।
बजट आवंटित करना महत्वपूर्ण कदम
इसमें कोई दो राय नहीं कि हालिया सालों में सरकार खेलों के प्रति गंभीरता दिखा रही है। पिछले साल 2023 के आम बजट में खेलों के लिए आवंटित धनराशि भी यही इशारा करती है। 2022 के मुकाबले खेल मंत्रालय को 723 करोड़ रुपए अधिक मिले हैं। इसमें सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘खेलो इंडिया’ के लिए 1045 करोड़ का बजट आवंटित करना सबसे महत्वपूर्ण कदम था। यह 2022 के मुकाबले 72 फीसदी ज्यादा था।
इसके साथ ही भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) पर आश्रित रहने वाली नाडा और एनडीटीएल को अलग से 41 करोड़ मिले थे। निःसंदेह, इस सारी कवायद का मकसद खेल के स्तर को बढ़ाने के साथ ही खिलाड़ियों को डोपिंग जैसी ‘बीमारी’ से बचाना है। इस सबके बावजूद अगर डोपिंग के मामले सामने आ रहे हैं, तो जाहिर है कि इस दिशा में कुछ और ठोस एवं सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि डोपिंग के चलते ही रूस को 2019 में 4 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। कोई भी भारतीय ऐसी घोर शर्मनाक स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहेगा।