Hearing Machine – लोगों को सुनने में सहायता करता है डिवाइस
Hearing Machine: हमारे शरीर में मौजूद सभी अंग हमारे लिए काफी अहम होते हैं। खासकर हमारे सेंस ऑर्गन हमारे लिए काफी जरूरी होते हैं। शरीर में 5 तरह के सेंस ऑर्गन होते हैं, जिनमें आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा शामिल है। इन सभी के बिना अपने जीवन के कल्पना करना काफी मुश्किल होता है। कान इन्हीं जरूरी अंगों में से एक है, जो हमें सुनने में मदद करता है।
हालांकि, कई वजहों से कुछ लोग अपने सुनने की क्षमता खो देते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हियरिंग मशीन इन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह सुनने में असमर्थ और परेशानियों का सामना कर रहे लोगों को सुनने में मदद करता है। यह एक खास तरह का डिवाइस होता है, जो लोगों को सुनने में सहायता करता है। वर्तमान में इसका इस्तेमाल कई ऐसे लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो सुनने में असमर्थ हैं।
दुनिया की पहली हियरिंग मशीन
दुनिया के पहले श्रवण यंत्र यानी हियरिंग मशीन का आविष्कार 13वीं शताब्दी में हुआ था। इसे बनाने के लिए गाय और मेढ़े जैसे जानवरों के सींगों को खोखला कर उन्हें सुनने के उपकरणों के रूप में इस्तेमाल किया गया। इनमें एक गोल सिरा होता था, जो इयर कैनल में आराम से फिट हो जाता था और दूसरे छोर पर एक बड़ा छेद होता था, जो आवाज पकड़ने में मदद करता था। यह तकनीक में बहुत उन्नत नहीं था, लेकिन बावजूद इसके, सैकड़ों वर्ष तक इस्तेमाल किया जाता रहा।
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17वीं सदी में आया इयर ट्रंपेट
इसके बाद 17वीं शताब्दी में तकनीक विकसित होनी शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप कान की तुरही यानी इयर ट्रंपेट का आविष्कार किया गया। 1634 में बने इस ट्रंपेट का आकार इयर कैनल के समान था, जो ध्वनि एकत्र करके और इसे एक संकीर्ण ट्यूब के जरिए कानों तक पहुंचाता था। हालांकि, यह डिवाइस आवाज बढ़ाते नहीं थे, लेकिन ऐसे लोग जिन्हें सुनने में परेशानी होती थी, उन्हें इसकी मदद से आवाज पहचानने में काफी मदद मिलती थी। यह ट्रंपेट लकड़ी और धातु समेत विभिन्न सामग्रियों से विभिन्न आकृतियों और आकारों में बनाए गए थे।
इलेक्ट्रिक हियरिंग मशीन का विकास
इलेक्ट्रिक हियरिंग मशीन का विकास 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ। बिजली की खोज ने कई नए आविष्कारों को जन्म दिया। टेलीफोन एक बड़ा कारण था, जिसने हियरिंग मशीन के आविष्कार को प्रभावित किया। टेलीफोन और माइक्रोफोन प्रौद्योगिकी ने संचार और ऑडियोलॉजी के विकास को प्रेरित किया। इस तरह वॉल्यूम और फ्रीक्वेंसी को कंट्रोल करने की क्षमता का उपयोग कर इलेक्ट्रिक हियरिंग मशीन को बनाया गया। पहले इलेक्ट्रिक हियरिंग मशीन का आविष्कार साल 1898 में मिलर रीज हचिसन द्वारा किया गया था। उन्होंने ध्वनि को बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रिक करेंट का इस्तेमाल किया।
इसका डिजाइन एक कार्बन ट्रांसमीटर से बनाया था, जिसकी वजह ये यह डिवाइस पोर्टेबल था। हालांकि, पहले बड़े पैमाने पर इसे बनाना मुश्किल था और यह उतने पोर्टेबल भी नहीं थे। थॉमस एडिसन, जो खुद सुनने की क्षमता खो चुके थे, ने एक कार्बन ट्रांसमीटर का भी आविष्कार किया था, जिसे बाद में कार्बन हियरिंग मशीन के आधार के रूप में इस्तेमाल किया गया। उस समय के एक और हियरिंग इंस्ट्रूमेंट एक्सपर्ट और आविष्कारक, लुई वेबर ने ईशा-फोनोफर का निर्माण किया। साल 1911 में इसी इलेक्ट्रिक डिजाइन ने हियरिंग मशीन बनाने वाली कंपनी सीमेंस को प्रेरित किया।
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ऐसे हुई ट्रांजिस्टर हियरिंग मशीन की शुरुआत
टेक्नोलॉजी में अगला विकास वैक्यूम-ट्यूब हियरिंग मशीन था, जिसे साल 1920 के आसपास बनाया गया था। एक नौसेना इंजीनियर अर्ल हैनसन ने इस डिजाइन का पेटेंट कराया। इस डिवाइस से स्पीच को इलेक्ट्रिक सिग्नल में परिवर्तित किया गया, जिन्हें बाद में एम्प्लिफाई किया गया। सेकंड वर्ल्ड वॉर में सैन्य निवेश के कारण हियरिंग टेक्नलॉजी में और प्रगति हुई। इसके परिणामस्वरूप साल 1948 में बेल लेबोरेटरीज द्वारा विकसित ट्रांजिस्टर हियरिंग मशीन का आविष्कार हुआ। अंततः इसे छोटा कर दिया गया और आज इस्तेमाल होने वाले पोर्टेबल हियरिंग मशीन का जन्म हुआ।
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