Online World – अंधेरे की आपराधिक दुनिया में बदल गया ऑनलाइन मनोरंजन
Online World: ऑनलाइन सिर्फ मनोरंजन और मस्ती का स्पेस भर नहीं रहा, बल्कि यह अंधेरे की आपराधिक दुनिया में भी तब्दील हो गया है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को बचपन से ही बताएं कि कैसे साइबर दुनिया में सुरक्षित रहना जरूरी है। हमें बच्चों को बहुत कम उम्र में ही सिखाना चाहिए कि उन्हें अपनी विभिन्न दुनियाओं के पासवर्ड किसी को भी नहीं देना, साथ ही यह भी बताना है कि वे कैसे मजबूत पासवर्ड बनाएं, जिससे कि कोई चाहकर भी उनकी दुनिया में ताकझांक करने के लिए उनके डिजिटल ताले न तोड़ सके। आज हमें अपने बच्चों को यह समझाना भी बहुत जरूरी है कि इंटरनेट में मौजूद हर तरह की रंग बिरंगी दुनिया में गैर जरूरी ताकझांक करना बेहद खतरनाक हो सकता है।
कहने का मतलब ये है कि रोमांच के तौर पर भी खतरनाक वेबसाइटों को खोलने से बचना चाहिए। हमें यह बात अपने छोटे बच्चों के दिमाग में बिल्कुल शुरुआती दौर से ही भर देना चाहिए। इसे इस दौर की नैतिक शिक्षा माननी चाहिए, तभी वे आज ज्यादा स्मार्ट और सुरक्षित रह सकते हैं। हर सवाल का जवाब देने में तत्पर गूगल गुरु, चमत्कार जैसे कारनामे दिखाने वाले डिजिटल गैजेट्स और वैश्विक एक्सपोजर वाली हमारी नई पीढ़ी के लिए पुरानी नैतिक शिक्षाएं बेकार हैं। झूठ न बोलो, बड़े जो कहें उसे सिर झुकाकर मान लो, घर आये लोगों के साथ सम्मान से पेश आएं। ये पारंपरिक नैतिक शिक्षाएं नई पीढ़ी की सोच और हाजिरजवाबी के सामने हास्यापद लगने लगी हैं।
सम्मान और विनम्रता से पेश आएं किशोर
बदले हुए पारिवारिक और सामाजिक परिवेश के बीच नैतिकता की पुरानी कसौटियों पर बच्चों को कसना अब न तो व्यावहारिक है और न ही आसान है। इसलिए इस डिजिटल युग में न सिर्फ भारतीय किशोरों के लिए, नए जमाने की नैतिक शिक्षाएं होनी चाहिए, बल्कि उसमें आने वाले भविष्य के दृष्टिकोण भी शामिल किए जाने चाहिए। मसलन अब के पहले तक नागरिकता के एहसास और संदर्भ दोनों ही सीमित थे। अब से पहले कभी डिजिटल नागरिकता हमारे जीवन का हिस्सा नहीं थी, जबकि आज है।
इसलिए आज के किशोरों को यह सिखाने से ज्यादा कि घर में आये मेहमानों, अपरिचितों के सामने वह किस तरह सम्मान और विनम्रता से पेश आएं, कहीं ज्यादा यह समझाना जरूरी है कि ऑनलाइन दुनिया में अजनबी लोगों के साथ कैसे जिम्मेदारी और सम्मान का व्यवहार किया जाए। साइबर बुलिंग से बचने, दूसरों की निजता का सम्मान करने और अजनबी लोगों के साथ भी ऑनलाइन की दुनिया में सही जानकारी का आदान-प्रदान करना, आज की नैतिकता के जरूरी पहलू होने चाहिए।
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झूठ, अफवाहों और गलत सूचनाओं से बचें
आज जरूरी हो गया है कि हम अपने नौनिहालों को सिखाएं कि सोशल मीडिया में झूठ, अफवाहों और गलत सूचनाओं से कैसे खुद बचें और दूसरों को बचाएं। निःसंदेह इंटरनेट में हर वह जानकारी उपलब्ध है, जो हमें चाहिए या जिसकी बदौलत हम अपना दृष्टिकोण पेश कर सकते हैं, लेकिन हमें अपने किशोरों को यह समझाना भी जरूरी है कि इंटरनेट में मौजूद हर जानकारी पत्थर की लकीर नहीं है। इंटरनेट में अगर लाखों सही जानकारियां हैं, तो दसियों लाख झूठी और बरगलाने वाली जानकारियां भी हैं। इसलिए हमें अपने बच्चों को इस बात के लिए सजग बनाना चाहिए कि इंटरनेट में उपलब्ध हर जानकारी को आंख मूंदकर न मान लें, उसे आलोचनात्मक दृष्टि से देखें और समझें। कुल मिलाकर यह कि जानकारियों के अथाह समंदर में सही और गलत जानकारियों को जानना, समझना भी सीखें।
डिजिटल समय प्रबंधन की शिक्षा अनिवार्य हो
एक जमाना था, जब टाइम काटे नहीं कटता था, तब यह मुहावरा बहुत आम था कि वक्त बिताने या टाइम पास करने के लिए फलां काम कर रहे हैं। आज इसके बिल्कुल उलट है। आज पता ही नहीं चलता, कब समय चकमा देकर उड़ गया। इसलिए इस डिजिटल दौर में हमें अपने किशोरों को डिजिटल समय प्रबंधन की शिक्षा अनिवार्य रूप से एक नैतिक शिक्षा के रूप में देना चाहिए। क्योंकि अगर हमारे बच्चे आज के दौर में सोशल मीडिया के साथ दो-चार होते समय यह ध्यान न रख पाये कि इस सबके लिए उन्हें कितना समय देना है, तो यह बेफिक्री उनकी बर्बादी का सबब बन सकती है। आज की तारीख में कुछ गलत न करते हुए भी सोशल मीडिया पर गलत तरीके से समय बिताना भी हमें अपने रास्ते से भटका सकता है और असफल बना सकता है। इसलिए इस डिजिटल दौर में हमारे बच्चों को डिजिटल समय प्रबंधन की नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी है।
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कैमरे की आंख हर जगह पहुंची
वक्त आ गया है कि हम अपने बच्चों को उस उम्र में, जिस उम्र में पहले वर्णमाला सिखाई जाती थी, उन्हें सिखाएं कि आज ऑनलाइन की दुनिया में हमें दूसरे लोगों से भी पहले स्वयं के लिए जिम्मेदार होना कितना जरूरी है। साथ ही हमें उनमें यह ईमानदारी और सच्चाई स्वीकार करने की नैतिकता भी भरनी चाहिए कि अगर उनसे ऑनलाइन की दुनिया में कोई गड़बड़ हो जाती है, तो उसे सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए, जिससे कि भविष्य में उन्हें सुधारना संभव हो। यही नहीं हमें बचपन से ही अपने बच्चों को यह समझना चाहिए कि आज की दुनिया में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां कैमरे की आंख न पहुंच सकती हो।
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