Semiconductor – आधुनिक चमत्कार और इंजीनियरिंग की उपलब्धि
Semiconductor: 1956 की बात है, जब भौतिकी के नोबेल पुरस्कारों का ऐलान हुआ। उस वक्त तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों विलियम शॉकली, वॉल्टर ब्रैटन और जॉन बार्डीन को ट्रांजिस्टर के आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तब जाकर दुनिया को पता चला कि यह ट्रांजिस्टर कितनी बड़ी खोज साबित होने वाली है। जॉन बार्डीन को तो 1972 में एक बार फिर भौतिकी का नोबेल अमेरिकी वैज्ञानिकों लियोन ए कूपर और जॉन रॉबर्ट श्नेफर के साथ मिला।
इन तीनों ने सुपरकंडक्टिविटी का क्रांतिकारी सिद्धांत दिया, जिसे बीसीएस थ्योरी भी कहा जाता है और जो 21वीं सदी के लिए क्रांतिकारी चीज मानी जाती है। विलियम शॉकली, वॉल्टर ब्रैटन और जॉन बार्डीन ने बेल लैब में 1947 में ही ट्रांजिस्टर बना लिया था। उस वक्त यह ज्यादा पावर लेता था। बाद में मोहम्मद अटाला नाम के एक इंजीनियर ने सिलिकॉन सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया, जिसे शुरुआत में तो नहीं माना गया, मगर आखिर में दुनिया को उनकी बात माननी पड़ी।
इलेक्ट्रॉन के प्रवाह पर बंदिशें लगाता
एक सेमीकंडक्टर सोने या तांबे जैसा खास होता है, क्योंकि यह भी पदार्थ के सबसे छोटे कण यानी इलेक्ट्रॉन को अपने से होकर गुजरने देता है। मगर यह सीसे जैसा तुच्छ भी है, क्योंकि यह इलेक्ट्रॉन के प्रवाह पर बंदिशें भी लगाता है। इसे ऐसे समझिए कि किसी सेमीकंडक्टर से बिजली दौड़ती तो है, मगर वह कॉपर या गोल्ड जैसे फुल कंडक्टर की तरह तेजी से नहीं दौड़ पाती है। यह सीसे, रबर या सूखी लकड़ी जैसे कुचालकों से थोड़ा ज्यादा होता है, जो बिजली के प्रवाह पर कुछ अंकुश लगाता है। सेमीकंडक्टर की कंडक्टिविटी तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है। यानी यह कभी कंडक्टर के रूप में और कभी इन्सुलेटर के रूप में काम करता है। आमतौर पर सिलिकॉन, जर्मेनियम और गैलियम आर्सेनाइड से बने सेमीकंडक्टर हार्डवेयर या तो मुक्त प्रवाह की अनुमति देते हैं या इसे पूरी तरह से रोक देते हैं।
Read more: PM E Drive Scheme: EV के मोर्चे पर ‘खटाखट’ फैसले-फटाफट फंड
सेमीकंडक्टर कैसे करता है काम, कैसे यह बनता है सुपर
सेमीकंडक्टर को हिंदी में अर्धचालक कहा जाता है, जिन्हें इंटीग्रेटेड सर्किट (IC), ट्रांजिस्टर या माइक्रोचिप्स के रूप में जाना जाता है।यह शुद्ध तत्वों जैसे सिलिकॉन, जर्मेनियम या गैलियम आर्सेनाइड जैसे कंपाउंड से बने होते हैं। सेमीकंडक्टर बनाने की डोपिंग प्रक्रिया के दौरान इन शुद्ध तत्वों में थोड़ी मात्रा में अशुद्धियां मिलाई जाती हैं, जिससे उसकी कंडक्टिविटी यानी चालकता में बड़े बदलाव होते हैं। मोहम्मद अटाला मिस्र के वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सिलिकॉन के सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी।
एक चिप में गीजा के विशाल पिरामिड जितने ट्रांजिस्टर
एक सेमीकंडक्टर चिप में गीजा के महान पिरामिड में लगे सभी पत्थरों जितने ट्रांजिस्टर होते हैं। आज दुनिया भर में रोजाना के इस्तेमाल में 100 अरब से ज्यादा आईसी हैं, जो हमारी आकाशगंगा के किसी एक कोने में बसे तारों की संख्या के बराबर है। इसी सेमीकंडक्टर के बाजार पर नियंत्रण करने के लिए अमेरिका और चीन में होड़ मची हुई है।
नैनो फैब्रिकेशन सीरीज से बनते हैं सेमीकंडक्टर्स
हर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे दीवार में लगे प्लग या बैटरी में सेमीकंडक्टर होते हैं।डायोड, चिप्स और ट्रांजिस्टर सभी डिवाइस इन्हीं से बने होते हैं। सेमीकंडक्टर डिवाइस एकदम शुद्ध सिंगल क्रिस्टल सिलिकॉन से बने सब्सट्रैक्ट की सतह पर की जाने वाली नैनोफैब्रिकेशन प्रॉसेस की एक सीरीज में बनते हैं।इन सब्सट्रैक्ट को आमतौर पर वेफर्स के रूप में जाना जाता है।
सेमीकंडक्टर बनाने के इस प्रॉसेस में बेहद सावधानी
सेमीकंडक्टर बनाने की प्रक्रिया जटिल होती है। इसमें रेत से पहले सिलिकॉन तत्व निकाला जाता है। इसके बाद सबसे पहले वेफर फैब्रिकेशन होता है।जिसमें सिलिकॉन से वेफर तैयार किए जाते हैं। र पैटर्न ट्रांसफर होता है। इसके बाद इसकी डोपिंग की जाती है। फिर इसमें डिपॉजिशन, ईचिंग और पैकेजिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह वास्तव में एक आधुनिक चमत्कार और इंजीनियरिंग की उपलब्धि है। इस प्रॉसेस में बेहद सावधानी बरतनी होती है। सिलिकॉन चिप बनाने में तीन अहम कंपोनेंट होते हैं। पहला-कच्चा माल यानी हार्डवेयर, डिजाइन और फैब्रिकेशन। मीकंडक्टर की दुनिया में डिजाइन ऐसा कंपोनेंट है, जिस वजह से कोई देश आगे निकल सकता है। अगर भारत इस क्षमता का इस्तेमाल करने में सक्षम हो तो फिर दुनिया का कोई भी देश उसे पीछे नहीं छोड़ सकता। दरअसल, भारत के पास दुनिया का बड़ा सिलिकॉन भंडार है।
- Content Marketing : भारत में तेजी से बढ़ रहा है कंटेंट मार्केटिंग का क्रेज - January 22, 2025
- Black Magic Hathras: ‘काले जादू’ के नाम पर 9 वर्ष के बच्चे की बलि - January 18, 2025
- Digital Marketing: आपके व्यवसाय की सफलता की कुंजी ‘डिजिटल मार्केटिंग’ - January 18, 2025