Garbage In India: देश में हर दिन 3 से 3.5 लाख मीट्रिक कचरा होता है पैदा
Garbage In India: भारत सरकार के नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरों में हर दिन 1 लाख 30 हजार मीट्रिक टन से लेकर 1.50 लाख मीट्रिक टन तक ठोस कचरा पैदा होता है। अगर इसे प्रति व्यक्ति के हिस्से में डालें तो हम भारतीय करीब-करीब हर दिन 350 से लेकर 550 ग्राम तक कचरा पैदा करते हैं और अभी तो इस कचरे में गांवों की हिस्सेदारी भी नहीं है। इसलिए अगर देखा जाए तो भारत में हर दिन शहरों और गांवों को मिलकर करीब 3 से 3.5 लाख मीट्रिक कचरा पैदा होता है।
यह कचरा इतना ज्यादा है कि अगर इसे किसी मैदान में डालना शुरू किया जाए तो एक साल के भीतर 10 किलोमीटर लंबा मैदान 100 मीटर से ऊंचे कचरे के पहाड़ में तब्दील हो जायेगा। इसे दूसरी तरह से समझें तो अगर 10 दिन के कचरे को राजधानी दिल्ली जैसे शहर में ऊपर से गिरा दिया जाए तो पूरी दिल्ली इस कचरे में डूब सकती है। भारत के लिए कचरा सचमुच एक बड़ी समस्या बन चुका है। ऐसा नहीं है कि दुनिया के दूसरे देशों में कचरे की समस्या नहीं है लेकिन दूसरे देशों के नागरिकों और आम भारतीयों में एक जबरदस्त फर्क है।
2014 से मौजूदा सरकार दिन-रात अलग-अलग तरीकों से साफ सफाई के अभियान में जुटी हुई है। शहरों में स्वच्छता को लेकर बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं। हर दिन, दिन में कई-कई बार बड़े महानगरों में कचरा उठाने वाली गाड़ियां घूम रही हैं। दिन भर लाउडस्पीकर लगाकर कचरे के बारे में आगाह भी कर रही होती हैं लेकिन इतने सघन और आक्रामक प्रचार के बावजूद भी अभी तक 10 फीसदी लोग भी कचरा न करने या सही जगह पर कचरा डालने के लिए सचेत नहीं हुए। दरअसल भारतीयों को जिन गतिविधियों में कोई तात्कालिक और त्वरित आर्थिक फायदा नहीं दिखता, ऐसी बातें और गतिविधियां उन्हें आकर्षित ही नहीं करतीं। यही कारण है कि सफाई के प्रति मोदी सरकार की इतनी सक्रियता के बाद भी सफाई लोगों के सहज आचरण का हिस्सा नहीं बन रही।
रेलवे स्टेशनों पर हर साल 50 लाख से ज्यादा खर्च
आज भी छोटे शहरों, कस्बों और गांवों को तो छोड़िये, मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में भी लोग उसी तरह बड़ी सहजता से कचरा करते हैं जैसे इसका कोई मतलब ही न हो। दरअसल जैसे सन 1980 के बाद ही लगातार तंबाकू, बीड़ी और सिगरेट पर केंद्र व राज्य सरकारों के साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के निरंतर आगाह करने के बाद भी इन सबका न केवल इस्तेमाल जारी है बल्कि बढ़ रहा है।
कैंसर का कारण बताने के बाद भी तंबाकू, बीड़ी या सिगरेट की खपत पर रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ रहा। इसलिए संदेह है कि इतनी मेहनत और इतने बड़े पैमाने पर धनराशि खर्च करने के बाद भी भारत स्वच्छता का पैमाना हासिल कर पायेगा। पिछले करीब 10 साल में अगर कहीं पर सचमुच इस सफाई अभियान का थोड़ा फर्क दिखा है तो वे भारत के रेलवे स्टेशन हैं जिनमें औसतन हर बड़े स्टेशन को साफ सुथरा रखने के लिए सालाना 50 लाख रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं। फिलहाल, इतनी रकम खर्च करने के बाद भी ऐसी उल्लेखनीय सफलता रेलवे स्टेशनों पर भी नहीं दिखती कि आप बस देखते रह जाएं।..और हां, यह मानना भी गलत होगा कि कुछ फर्क ही नहीं पड़ा।
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सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं गांधीजी
गांधीजी सफाई के आधुनिक भारत के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं। गांधीजी सफाई के इस हद तक हिमायती थे कि साबरमती आश्रम में आए कई मेहमानों का मैला वह खुद साफ करते थे। सिर्फ भारत में ही नहीं जब वह दक्षिण अफ्रीका में थे और वहां जबरदस्त प्लेग फैल गया था तो गांधीजी ने अपने स्वच्छता अभियान की बदौलत 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान बचायी थी। दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेज सरकार यह देखकर अभिभूत थी।
उसने गांधीजी का इस मामले में सार्वजनिक अभिनंदन किया था। वास्तव में गांधीजी की महामानव वाली छवि ऐसे ही नहीं निर्मित हुई। वह कई मामलों में सचमुच आइंस्टीन के मुताबिक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें लेकर एक दौर आयेगा, जब लोगों को यकीन ही नहीं होगा। गांधीजी स्वच्छता को लेकर इतने कट्टर थे कि वह इसे राजनीतिक स्वतंत्रता से भी ज्यादा मानते थे।
वह बार-बार एक जुमले को भरपूर ताकत से दोहराते थे कि अगर कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं रह सकता तो वह स्वस्थ भी नहीं हो सकता। गांधीजी का ग्राम स्वराज वास्तव में उनकी कल्पना के बेहद साफ-सुथरे गांवों से बना था। वह बहुत गंभीरता से कहा करते थे कि आपका शौचालय आपके ड्राइंगरूम से ज्यादा साफ होना चाहिए। वह बड़ी मजबूत आवाज से कहते थे, नदियों को साफ रखकर ही हम अपनी सभ्यता को जिंदा रख सकते हैं।
अपने अंदर की स्वच्छता पहली चीज
गांधीजी बार-बार लोगों को उपदेश देते थे। उन्हें सिखाते थे कि अपने अंदर की स्वच्छता पहली चीज है, Garbage In India: बाकी सारी चीजें उसके बाद। गांधीजी इसके लिए दूसरों पर निर्भरता के हिमायती नहीं थे। वह साफ शब्दों में कहते थे कि हर किसी को अपना कूड़ा उठाना चाहिए। वह अपनी तमाम राजनीतिक बातों को स्वच्छता की धारणा से जोड़ दिया करते थे। वे कहते थे, अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है, जो सतह को चमकदार और साफ कर देती है और वह स्वच्छता को सीखने या धारण करने वाली कोई चीज नहीं मानते थे। वह कहते थे, स्वच्छता आपके आचरण का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए अगर सियासत की जगह शहर ही गांधीजी की प्रेरणा से स्वच्छ हो जाए तो यह छोटी उपलब्धि नहीं होगी।
अक्टूबर 2024 के अंत तक भारत के 1,000 शहर थ्री स्टार कचरामुक्त शहर बन जाएंगे। आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय को यह लक्ष्य प्राप्त करने का पूरा भरोसा है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर, 2021 को स्वच्छ भारत मिशन (अर्बन) 2.0 की शुरुआत करते हुए आह्वान किया था कि अगले 5 वर्षों में देश के सभी शहरों को कचरामुक्त कर दिया जायेगा। अब आवासन शहरी कार्य मंत्रालय ने इस लक्ष्य में संशोधन करते हुए घोषणा की है कि 2024 के अंत तक 1,000 शहरों को थ्री स्टार रेटिंग वाले कचरामुक्त शहरों में बदल दिया जायेगा। इसका मतलब यह है कि ये शहर अभी पूरी तरह से कचरामुक्त नहीं होंगे लेकिन इन सभी शहरों में अलग-अलग तरह के कचरे को एकत्र करने और सुरक्षित निपटान की वैज्ञानिक व्यवस्था हो जायेगी और बहुत तेजी से ये कचरामुक्त शहर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे होंगे।
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गांधी के आदर्शों पर चलना तो बहुत कठिन
गांधीजी पूरी दुनिया में अपने मानवीय, लोकतांत्रिक और ईमानदार सियासी आचरण के लिए जाने जाते हैं। दुनिया का कोई ऐसा लोकतांत्रिक देश नहीं है जहां गांधीजी की एक महान शख्सियत के रूप में इज्जत न हो और कोई ऐसा लोकतांत्रिक देश नहीं है जो अपने लोकतांत्रिक आदर्शों में गांधीजी को शुमार न करता हो। साथ ही जब भी दुनिया में कहीं भी स्वच्छ सुचितापूर्ण और सुचिंतित लोकतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना की जाती है तो गांधीजी उसके केंद्र में रहते हैं
लेकिन दूसरे देशों की क्या कहें, खुद भारत में आज मौजूदा राजनीति को गांधी जैसे आदर्श के आसपास भी पहुंच पाना मुश्किल है। यही वजह है कि राजनीतिज्ञों ने बड़ी सफाई से गांधी को राजनीतिक आदर्शों के परिदृश्य से गायब कर दिया है और उन्हें सचमुच में सफाई अभियान का प्रतीक बना दिया। अगर ईमानदारी से हो जाए तो यह भी कोई छोटी बात नहीं होगी। गांधी स्वच्छता के बहुत बड़े समर्थक थे और अपने निजी जीवन में वह हर समय अपने इर्द-गिर्द स्वच्छता का माहौल बनाकर रखते थे।
प्रतीक रूप में वह बड़ी दृढ़ता से कहा करते थे, ‘मैं किसी को गंदे पैरों के साथ अपने मन से नहीं गुजरने दूंगा।’ खैर, देश के राजनीतिक समाज को गांधी के आदर्शों पर चलना तो बहुत कठिन लगा लेकिन अब अगर यह देश ईमानदारी से गांधी के स्वच्छता मिशन अभियान में ही आगे बढ़ सके और इस लक्ष्य को हासिल कर सके तो यह न सिर्फ बहुत बड़ी उपलब्धि होगी बल्कि महात्मा गांधी को दी गई सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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