Space Station: भारत का अंतरिक्ष में होगा अपना बेस
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने 2028 तक देश का पहला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन लांच करने का ऐलान किया है। यह एक रोबोटिक मॉड्यूल होगा यानी एक ऐसा उपग्रह जहां हम डॉक कर सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं और वापस आ सकते हैं। लेकिन किसी इंसान का अंतरिक्ष स्टेशन पर जाना 2035 के बाद ही संभव होगा। अंतरिक्ष स्टेशन (एसएस) पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन या रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह होता है। अभी तक पृथ्वी की निचली कक्षा में पूरी तरह से कार्यरत 2 अंतरिक्ष स्टेशन मौजूद हैं।
पहला अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) और दूसरा चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (टीएसएस) है। लेकिन इनमें से दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन कोई भी नहीं है। इसरो ने अपनी इस महत्वाकांक्षा का खुलासा 2019 में ही किया था कि अगले 20 से 25 सालों में भारत का अंतरिक्ष में अपना बेस होगा। कहने का मतलब यह कि अंतरिक्ष स्टेशन इसरो के फ्यूचर प्लान में काफी पहले से शामिल रहा है। स्पेस स्टेशन बनाने की शुरुआती योजना पर काम 2019 में ही शुरु हो गया थाए लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कई परियोजनाए लटक गईं या काफी पिछड़ गईंए उनमें एक यह भी रहा। अब सब कुछ पटरी पर आ चुका है। इसलिए इसरो ने भी अपनी महत्वाकांक्षी योजना से पर्दा उठा दिया है।
साल्युट-1 था पहला अंतरिक्ष स्टेशन
दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन साल्युट 1 था, जिसे तत्कालीन सोवियत संघ (आज का रूस) ने 19 अप्रैल 1971 को कजाकिस्तान के बायकोनूर कॉसमोड्रोम से लांच किया था। यह अंतरिक्ष स्टेशन करीब 20 टन वजनी और बेलनाकार था। इसकी लंबाई 12 मीटर और चौड़ाई 4.25 मीटर थी। सिंगल डॉकिंग पोर्ट वाला यह स्टेशनए तीन कार्यशील खंडों में विभाजित था। इसके भेजने का मुख्य मकसद लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा में इंसान के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना और अंतरिक्ष से पृथ्वी की निरंतर तस्वीरें लेना था।
5 देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां भागीदार
वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन है, उसे 20 नवंबर 1998 को लांच किया गया था। अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा के नेतृत्व में संचालित यह स्पेस स्टेशन एक बहुराष्ट्रीय सहयोग से संचालित परियोजना है। इसमें 5 देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां भागीदार हैं। ये हैं अमेरिका की नासा, रूस की रोस्कोस्मोस, जापान की जेएएक्सए यूरोप की ईएसए तथा कनाडा की सीएसए।
इस स्पेस स्टेशन में छह क्वाटर हैं, जिसमें दो बाथरूमए एक जिम और एक 360 डिग्री का दृश्य दिखाने वाली खिड़की। नासा के मुताबिक इस अंतरिक्ष स्टेशन की माप करीब 109 मीटर है। इसे 1984 और 1993 के बीच डिजाइन किया गया था। साल 2000 से इस अंतरिक्ष स्टेशन में दुनिया के अलग अलग देशों के एस्ट्रोनॉट्स ने रहना शुरु किया। ये अंतरिक्ष यात्री यहां रहकर दूसरे ग्रहों की स्टडी और विभिन्न तरह के दूसरे प्रयोग करते हैं।
400 किमी की ऊंचाई पर काट रहा चक्कर
मौजूदा आईएसएस धरती से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर रहकर पृथ्वी के चक्कर काटता है। इसकी रफ्तार 28 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा हैए जिससे यह महज 90 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर लेता है। आईएसएस के अलावा अंतरिक्ष में जो दूसरा अंतरिक्ष स्टेशन मौजूद हैए वह चीन का तियांगोंग हैए जिसका चीनी भाषा में मतलब होता है स्वर्ग का महल। यह एक स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन हैए जिसकी लंबाई 55 मीटर या 180 फीट है।
इसमें तीन मॉड्यूल हैंए जिसमें एक कोर मॉड्यूल हैए जहां छह अंतरिक्ष यात्री रह सकते हैं। इसके अलावा चीन के इस अंतरिक्ष स्टेशन में 3ए884 क्यूबिक फुट या 110 क्यूबिक मीटर के दो मॉड्यूल हैं। चीन का अंतरिक्ष स्टेशन नासा के नेतृत्व वाले इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से छोटा है, लेकिन चीन ने इस स्टेशन को भविष्य में और बड़ा बनाने की योजना बनाई है। चीन की योजना है कि इसमें तीन और मॉड्यूल जोड़े जाएं।
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